श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है – “संतोष के दोहे…”. आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 175 ☆
☆ “संतोष के दोहे…” ☆ श्री संतोष नेमा ☆
☆
सुनो टमाटर आज कहानी
आने लगा आँख में पानी
☆
कहे विदेशी कोई तुझको
कोई कहता पाकिस्तानी
☆
घर गरीब का छोड़ा तूने
दूभर की उनकी जिंदगानी
☆
गुटनिरपेक्ष कहानी तेरी
बैगन आलू गोभी जानी
☆
फेर में आकर राजनीति के
करे खूब तू भी मनमानी
☆
महंगाई के आसमान से
उतर करो सबकी अगवानी
☆
ठेस न हो “संतोष” किसी को
छोड़ो अब सारी नादानी
☆
© संतोष कुमार नेमा “संतोष”
सर्वाधिकार सुरक्षित
आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈