आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण रचना  “सोरठा सलिला – कृष्ण)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 145 ☆

☆ सोरठा सलिला – कृष्ण ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

अनुपम कौशल कृष्ण, काम करें निष्काम रह।

हुए नहीं वे तृष्ण, थे समान सुख-दुःख उन्हें।।

*

खींचो रेखा एक, अकरणीय-करणीय में।

जाग्रत रखो विवेक, कृष्ण न कह करते रहे।।

*

कृष्ण कर्म पर्याय, निष्फल कुछ करते नहीं।

सक्रियता पर्याय, निष्क्रियता वरते नहीं।।

*

गहो कर्म सन्यास, यही कृष्ण-संदेश है।

हो न मलिन विन्यास, जग-जीवन का तनिक भी।.

*

कृष्ण -राधिका एक, कृष्ण न मिलते कृष्ण भज।

भजों राधिका नेंक, आ जाएँगे कृष्ण खुद।।

* 

तहाँ कृष्ण जहँ प्रेम, हो न तनिक भी वासना।

तभी रहेगी क्षेम, जब न वास हो मोह का।।

*

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

९-२-२०१५, जबलपुर

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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