डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके – पर्यावरण पर दोहे…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 146 – पर्यावरण पर दोहे…
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चिन्ता है परिवेश की, पर्यावरण विशेष ।
चिंतित सारा विश्व है, चिंतित अपना देश ॥
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चिन्ता से क्या हुआ है, चिन्तन करें हुजूर
मानव कैसे हो गया, पंचतत्व से दूर ॥
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क्षिति को रौंदा पाँव से, जल को किया मलीन ।
पावक को इतना पिया, हुआ रेत की मीन ॥
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जंगल पर्वत नदी सब, ताक रहे आकाश ।
गगन पवन से पूछता, कितनी जीवन श्वांस ॥
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सभी तरह के प्रदूषण, मूल एक आधार ।
मन से मन की विलगता, अनुपस्थित है प्यार ||
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© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
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