डॉ भावना शुक्ल
(डॉ भावना शुक्ल जी (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं “भावना के दोहे…”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 190 – साहित्य निकुंज ☆
☆ भावना के दोहे ☆
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मन में कबसे चल रहे, कितने झंझावात।
कहा अभी तक कुछ नहीं, होगा कभी प्रभात।।
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मन भावन की भावना, यही हमारे भाव।
नहीं हमारे पास है, भावों का आभाव।।
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देख रहे बुद्ध इन्हें, करते नहीं कराह।
लेते अंतिम वो विदा, बीच छोड़ गए राह।।
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यशोधरा कहती नहीं, नहीं कभी वो क्रुद्ध।
उसने त्याग बहुत किया, आचरण था बुद्ध।।
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तेरे मेरे प्यार की, चमक फैलती साफ।
कहा चांद ने आज तो, करो चांदनी माफ।।
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© डॉ भावना शुक्ल
सहसंपादक… प्राची
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