सुश्री ऋता सिंह
(सुप्रतिष्ठित साहित्यकार सुश्री ऋता सिंह जी द्वारा ई- अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए अपने यात्रा संस्मरणों पर आधारित आलेख श्रृंखला को स्नेह प्रतिसाद के लिए आभार। आप प्रत्येक मंगलवार, साप्ताहिक स्तम्भ -यायावर जगत के अंतर्गत सुश्री ऋता सिंह जी की यात्राओं के शिक्षाप्रद एवं रोचक संस्मरण आत्मसात कर सकेंगे। इस श्रृंखला में आज प्रस्तुत है आपका यात्रा संस्मरण – मेरी डायरी के पन्ने से…हमारी ग्रीस यात्रा – भाग 1)
मेरी डायरी के पन्ने से… – हमारी ग्रीस यात्रा – भाग 1
(अक्टोबर 2017)
हमारी ग्रीस की यात्रा – ज़मीं से जुड़े लोग
हम अपने नाती को साथ लेकर इटली और ग्रीस की यात्रा पर निकले थे। इटली की सैर पूरी हो गई तो हम ग्रीस के लिए रवाना हुए। हमारी पहली मंजिल क्रीट थी।
क्रीट ग्रीस का एक सुंदर और सबसे बड़ा द्वीप है। एक तरफ पहाड़ का सुंदर हरा-भरा दृष्य है और दूसरी तरफ आकर्षक शांत, गहरे नीले रंग का समुद्र। क्रीट का हवाई अड्डा भी समुद्र किनारे से सटा हुआ है।
आसमान में उड़ते – उड़ते, सागर पर चलते जहाज़ों को निहारते रहे और अचानक हवाई जहाज़ के पहियों ने धरा को छू लिया। मेरी नज़रें अब भी स्थिर होकर शांत नीले समंदर को निहार रही थी। अचानक तंद्रा टूटी। अनाउंसमेंट ने बेल्ट न खोलने और बैठे रहने की हिदायत दी। थोड़ी देर बाद एयरो ब्रिज से विमान जा लगा और उतरने की इजाज़त दी।
सारा दृष्य मन को आह्लादित कर रहा था।
हमारे रहने की व्यवस्था भी ऐसे ही एक रमणीय स्थल पर था। बस हर वक़्त दिल बाग – बाग हो उठता, हर दृष्य मनमोहक ही था। मुझे प्रकृति से बहुत लगाव है, पेड़ – पौधे, पहाड़, समुद्र, बाग- बगीचे मुझे बहुत भाते हैं। बलबीर मेरी इन छोटी – छोटी बातों का ध्यान रखते हैं। इसलिए क्रीट में भी हमारी बुकिंग ‘ विलेज हाईट गॉल्फ रिज़ोर्ट में किया गया था जो पहाड़ पर, समुद्र के किनारे स्थित था।
इस रिज़ोर्ट तक पहुँचने के लिए रिज़ोर्ट की ही गाड़ी हमने भारत में बैठकर ही ऑनलाइन बुक की थी। गाड़ी हमें एयरपोर्ट पर लेने आई। ड्राइवर अंग्रेजी बोलने में समर्थ था। वह प्लैकार्ड लेकर ही खड़ा था। रोम से क्रीट की दूरी 1299 किमी.है। यात्रा दिन के समय और सुखद रही। हम रिज़ोर्ट पहुँचे।
विशाल परिसर, आला दर्ज़े की व्यवस्थाएँ, छोटे -छोटे दो बेडरूम हॉल, किचन, डाइनिंग रूमवाले यात्रियों के लिए बनाए गए अस्थायी निवास स्थान।
रिज़ोर्ट से मुख्य शहर तक शटल चलती है, निःशुल्क। अतएव सैलानी शहर जाकर आवश्यक भोजन सामग्री खरीद लाते और अपने निवास स्थान पर भोजन पकाने की व्यवस्था होने के कारण भोजन पकाकर ही खाते। मैं स्वयं निरामिषभोजी हूँ अतएव यह व्यवस्था हमारे परिवार के लिए अत्यंत सटीक बैठती है।
यह बताना यहाँ आवश्यक है कि विदेश में बाहर भोजन खाना बहुत महँगा पड़ता है। हमारे रुपये को विदेशी मुद्रा में परिवर्तित करने पर इस बात का अहसास होता है। योरोप में इंग्लेंड को छोड़कर अधिकांश स्थानों में यूरो ही प्रचलित है। एक यूरो 84 भारतीय रुपये के बराबर हैं। ये समय- समय पर ऊपर नीचे होते रहते हैं।
हम भी सात दिन वहाँ रहने के लिए आवश्यक वस्तुएँ बाज़ार से खरीद लाए। रिज़ोर्ट के भीतर भी एमरजेंसी में आवश्यक सामान मिलते हैं जैसे ब्रेड, मक्खन, चीज़, अंडे, ज्यूस, स्थानीय फल आदि। इस स्थान को टक इन कहते हैं।
पहले दिन तो हमने रिज़ोर्ट का आनंद लिया। सुंदर लायब्रेरी, फिल्म देखने के लिए सी.डी उपलब्ध थे। शाम के समय मनोरंजन के कार्यक्रम होते हैं। उस दिन ग्रीक जादूगर मनोरंजन के लिए आया था। उसने हमारा न केवल मनोरंजन किया बल्कि हमें खूब हँसाया। हम भारतीयों को देखकर वह भी बहुत ही खुश हो रहा था।
दूसरे दिन हम शहर घूमने निकले। शटल से हम शहर के मुख्य भाग तक पहुँचे और वहाँ छोटी लाइन की धीरे चलनेवाली ट्रेन में बैठे। यह ट्रेन सारा शहर घुमाता है। वैसे क्रीट कोई बहुत बड़ा शहर नहीं है।
शहर घूमने के बाद हमने अन्य द्वीपों का सैर प्रारंभ किया। हम जिस दिन ‘सिसी’ नामक द्वीप में जाने के लिए रवाना हुए तो पता चला वह इस साल के सीज़न का आखरी दिन था। दूसरे दिन से छोटे द्वीपों के भ्रमण हेतु जहाज़ बंद होने जा रहे थे।
अब वहाँ ठंडी भी बढ़ने लगी थी।
क्रीट ग्रीस द्वीप समूह का सबसे बड़ा और घनी आबादीवाला द्वीप है। यह एजीयन सागर के दक्षिण में स्थित है। यह संसार का अट्ठ्यासीवाँ सबसे विशाल द्वीप है।
कहा जाता है कि मेडिटेरियन सागर का यह पाँचवा विशाल द्वीप है। सिसिली, सार्डीनिया साइप्रस, और कॉरसिका आदि स्थानों के बीच यह क्रीट द्वीप बसा है।
हम जहाज़ से सिसी जाने के लिए टिकट खरीदकर समुद्र किनारे स्थित एक काॅफ़ी शाॅप में आकर बैठ गए। वहाँ की काॅफ़ी का आनंद लेते रहे और आपस में वहाँ की प्राकृतिक सुंदरता की चर्चा भी करते रहे। समुद्र में उठती लहरें और पछाड़ खाकर पत्थर की दीवारों से उसका टकराना अत्यंत मोहक दृश्य था।
पास की मेज़ पर एक परिवार बैठा था। यद्यपि वे भारतीय दिखते थे परंतु आपस में इंग्लिश में बातचीत कर रहे थे। उनकी ज़बान में विदेशीपन का ऐक्सेंट था। ज़ाहिर था वे काफ़ी समय से देश से बाहर थे।
अचानक अनाउंसमेंट हुआ कि पंद्रह मिनिट में जहाज़ रवाना होनेवाला था। आसपास बैठै सभी यात्री उठने को उद्यत हुए।
विदेशों में अक्सर बहुत बड़े से मग में काॅफ़ी देते हैं, हम भी उसका मज़ा ले रहे थे।
अनाउंसमेंट सुनते ही हम भी शीघ्रता से काॅफ़ी गटकने लगे। मैंने काॅफ़ी के कप में एक बूंद काॅफ़ी न छोड़ी। मेरा नाती ज़ोर से हँसकर बोला, ” नानी, कप में एक बूंद काॅफ़ी न छोड़कर साढ़े चार यूरो वसूल कर रही हो!!” यह सुनकर हम तीनों ज़ोर से हँस पड़े। हम हिंदी में बातचीत कर रहे थे, शायद हँसी मज़ाक़ करते हुए हमारी आवाज़ थोड़ी बढ़ गई जो पड़ोस की मेज़ तक पहुँची। यहाँ स्मरण कराना उचित है कि समस्त योरोप में लोग बहुत धीमे स्वर में बातचीत करते हैं। मोबाइल पर भी उनकी आवाज़ धीमी ही होती है। पास खड़ा व्यक्ति भी कुछ नहीं सुन सकता। भारतीयों का स्वभाव इसके विपरीत है। हम सबकी आवाज़ ऊँची है, शायद हम लोग अधिक सुरीले भी हैं। हमारा परिवार कोई अपवाद नहीं।
हमारी बातचीत सुनकर पड़ोस में बैठै भारतीय परिवार के सज्जन हमारे पास आए और बोले, आप पंजाबी हो? मेरे पति महोदय रीऍक्ट करते उससे पूर्व ही मैंने हामी भर दी। और जनाब ठेठ पंजाबी में शुरू हो गए। बलबीर सिंह ऐसे मौकों पर ज़रा गश खाने लगते हैं क्योंकि उन्हें अपनी मातृभाषा नहीं आती तब मुझे ही मैदान संभालने के लिए आगे आना पड़ता है। हालाँकि यह मेरी भी मातृभाषा नहीं बल्कि ससुराली भाषा है। ख़ैर जनाब ने पंजाबी में अपना परिचय दिया। मैं उनसे बातें करती रही।
अब जहाज़ छूटने का वक्त हो रहा था। शिवेन हमारा नाती टॉयलेट गया था। टॉयलेट का उपयोग करने के लिए 2 यूरो देने पड़ते हैं। उसने बाहर आकर बताया कि टॉयलेट के अंदर प्रवेश करते ही सारा कमरा अंधकारमय हो गया। पॉट के पास खड़े होने पर ऊपर लगे सेंसर के कारण बत्ती जल उठी। फ्लश करने की आवश्यकता नहीं होती, वह स्वयं कुछ समय बाद फ्लश चलने लगता है तथा पॉट स्वच्छ होता हैं। उसके इस अनुभव से हमने भी नई टेक्नोलॉजी के बारे में जानकारी हासिल की। यह बिजली की और पानी की बचत की दृष्टि से की गई व्यवस्था होती है। लोग अक्सर टॉयलेट में बत्ती जलाकर ही लौट जाते हैं।
हम सब जहाज़ में बैठे, वे जनाब हमारे साथ ही बैठ गए। फिर से बातचीत का सिलसिला जारी रहा। उनका परिवार हमारी बातचीत में कोई रुचि नहीं ले रहा था। बनिस्बत वे जहाज़ी सैर का मज़ा ले रहे थे। पर ये जनाब फर्राटे से ग्रामीण भाग में बोली जानेवाली लहज़े में पंजाबी बोल रहे थे। बलबीर सिंह बीच – बीच में मुस्कराते और सिर हिलाते रहे। कभी – कभी इंग्लिश में जवाब देते पर जनाब बस पंजाबी में यों बोल रहे थे मानो ज़बान को किसी ने वर्षों से बाँध रखा था जो आज खुल गई।
बातचीत से ज्ञात हुआ कि जनाब का नाम था हरविंदर सिंह, नौ साल की उम्र में वे अपने पिता के साथ लंदन चले गए थे। वे जालंधर के निवासी थे। उनकी उम्र पचपन के करीब थी पर चेहरे पर झुर्रियों का ऐसा जाल बिछा था कि वे पैंसठ के ऊपर लग रहे थे। ! अपनी पत्नी, तीन बेटियाँ और एक चार वर्षीय नातिन को लेकर लंदन से सप्ताह भर छुट्टी मनाने तथा पत्नी की पचासवीं वर्षगांँठ मनाने ग्रीस आए थे।
जहाज़ में बैठै वे निरंतर बातचीत करते रहे। कभी – कभी खुशी से भर उठते और बलबीर का हाथ अपने हाथ में ले लेते और बड़ी देर तक सहलाते रहते। कहते रहे कि लंडन में तो जी बड़ी संख्या में पंजाबी रहते हैं, पर वे हमारे जैसे परदेसी हैं जो वहीं उनकी तरह पीढ़ियों से रहते आ रहे हैं पर हम तो आज भी भारतीय हैं, उनकी नज़रों में हम ख़ास पंजाबी हैं।
उनके बर्ताव से मुझे एक बात स्पष्ट हो रही थी कि इतने वर्षों के बाद भी उनके भीतर अपनी मिट्टी की खुशबू और भाषा की ललक किस क़दर घर किए हुए थी। उनकी पत्नी कीनिया में जन्मी, पली बढ़ी पंजाबी महिला थीं पर उन्हें केवल इंग्लिश और टूटी -फूटी हिंदी आती थी। हरविंदर सिंह मोने थे अर्थात सरदारों की तरह पगड़ी नहीं बाँधते थे पर थे सिक्ख संप्रदायी के। उन्होंने दो घंटे की यात्रा के दौरान अपने सारे इतिहास – भूगोल की जानकारी दे दी। उनके चेहरे पर एक लालिमा सी छाने लगी थी। चेहरे की झुर्रियाँ कुछ चमकने लगी थी। आँखों में एक अलग सी आभा दिखाई देने लगी थी। क्या इंसान के हृदय में देश से दूर रहने पर देशवासियों के लिए इतना स्नेह उमड़ता है ? मैं सोच रही थी कि यदि ऐसा है तो हम देश से दूर क्यों जाकर बसते हैं!
हम सिसी पहुँचे। यह मछुआरों का गाँव था पर कहीं कोई दुर्गंध नहीं, कूड़ा – कचरा नहीं बल्कि साफ़ सुथरे पाॅश रेस्तराँ बने हुए थे। हमने उस छोटे से द्वीप में एक चक्कर लगाया। सुंदर छोटे -छोटे घर बने हुए थे। खिड़कियों के बाहर सुंदर मौसमी फूल गमलों में लगे आकर्षक दिखाई रहे थे। घर की खिड़कियों पर लेस के पर्दे लगे थे जो सुंदर और मोहक दिख रहे थे।
समुद्र से थोड़ी दूरी पर कई छोटे- बड़े रेस्तराँ थे। दोपहर का समय था। हमें भी कहीं भोजन कर लेने की आवश्यकता थी। यहाँ के अधिकांश रेस्तराँ में बीयर के साथ फिशफ्राय या मछली के ही अन्य व्यंजन प्रसिद्ध हैं।
एक सुंदर से रेस्तराँ में हम तीनों भी बैठ गए मैन्यूकार्ड देखते ही मैं चकरा गई। ऐसा लगा जैसे पास रखा बटुआ भी काँप उठा। बारह -पंद्रह यूरो के नीचे कोई डिश न थी। पर खाना तो था। हम लोगों की एक अजीब मानसिकता है कि हम अनजाने में ही विदेशी मुद्राओं को देशी मुद्रा में कन्वर्ट करते हैं और ख़र्च से पूर्व हृदय की गति बढ़ जाती है।
आप पाठकों से यही निवेदन करूँगी कि आप जब विदेश घूमने जाएँ तो करेंसी कन्वर्ट कर तुलना न करें। ऐसा करने पर घूमने का आनंद कम हो जाता है।
खैर हम तीनों ने यही बात आपस में चर्चा की फिर मन को वश में किया और क्या खाएँ इस पर तीनों विचार करने लगे!
इतने में हरविंदर सिंह का परिवार भी वहीं आ गया। उन्होंने हम सबके साथ बैठकर खाने की इच्छा व्यक्त की। ‘ मोर द मेरियर ‘ इस सिद्धांत में हम लोग भी विश्वास रखते हैं। चार टेबल जोड़े गए और सब साथ में बैठे। अब सभी बातचीत करने लगे। कुछ इंग्लिश कुछ हिंदी और कुछ पंजाबी में। हँसी – ठट्ठे भी होने लगे। इतने में हरविंदर जी खड़े हो गए, बलबीर उनके बाँई ओर बैठे थे। उन्होंने बलबीर का हाथ पकड़ा और कहा – ” अब सारा भारतीय परिवार एक साथ खाना खाएगा, यह हमारा सौभाग्य है कि आप मेरे भाई हो, आज का बिल मैं पे करूँगा। “
यह सुनकर हम दोनों पति-पत्नी हतप्रभ हो गए। हम इसके लिए प्रस्तुत नहीं थे। अबकी बलबीर ने मैदान संभालकर कहा, ” हम आपके शुक्रगुज़ार हैं, आप भारत आइए हमें मेहमान नवाज़ी का मौक़ा दीजिए। हम भी आपके पास लंडन ज़रूर आएँगे तब आप अपनी इच्छा पूरी कर लेना। आज माफ़ करें। साथ में खाएँगे ज़रूर पर डच करेंगे। “( अपना ख़र्च उठाना) बलबीर के ज़रा ज़ोर देने पर वे थोड़ी उदासीनता के साथ मान गए। भोजन के पश्चात रेस्तराँ के टिश्यू पेपर पर एक दूसरे को पूरा पता, फोन नं, ई-मेल आई डी आदि दिए गए।
रेस्तराँ में लोकलगीत बज रहे थे और वहाँ पर आए हुए सैलानी खूब पीकर झूम रहे थे। सब अपनी मेज़ से उठ – उठकर नाचने लगे।
सारा माहौल उत्सव – सा बन गया। उपस्थित लोगों के चेहरे पर बेफ़िक्री की छाप थी। जीवन का हर पल आनंद लेने की यह वृत्ति हमें भी अच्छी लगी।
रेस्तराँ के मालिक के साथ उसके दोस्त ने शर्त लगाई तो संगीत के ताल पर वह नृत्य करने लगा और नृत्य करते हुए एक खाली तथा गोलाकार मेज़ को पहले अपने एक हाथ में उठा लिया फिर उसे अपनी उँगलियों पर गोल – गोल घुमाने लगा और नृत्य करने लगा। संगीत समाप्त होने पर रेस्तराँ के मालिक को उसके दोस्त ने पचास यूरो दिए जो शर्त की रकम थी। हमें लोकल लोगों ने बताया कि इस तरह के मनोरंजन ग्रीस में आम बात है। वे जीवन के हर दिन का आनंद लेने में विश्वास करते हैं। हमें उनकी यह जीवन के प्रति दृष्टिकोण अच्छा लगा। फिर बातचीत करते हुए हम जहाज़ पर लौट आए।
ज्यादातर बातचीत हम दोनों ही कर रहे थे क्योंकि जनाब हरविंदर सिंह जी ने तो उस दिन मानो पंजाबी बोलने का व्रत ले रखा था। किसी को बोलने का ख़ास मौका नहीं दे रहे थे। उनके घर के सदस्य उनका उत्साह देखकर बगले झाँकने लगे। पर हमें उनके उत्साह और उमंग देखकर अंदाजा आ रहा था कि वे क्यों इतने उतावले हो रहे थे। सैर करके अपने -रिज़ोर्ट लौट आए।
तीसरे दिन हमने लोकल मार्केट, और साधारण जगहों की सैर की। उस दिन शाम को रिसोर्ट में ब्राज़िलियन नृत्य का आयोजन था। यह नृत्य ब्राज़िलियन ही कर रहे थे। इसे सांबा नृत्य कहते हैं। इनके वस्त्र काफ़ी अलग होते हैं, खूब रंगीन भी होते हैं। नृत्य में शरीर का लचीलापन स्पष्ट दिखाई देता है। नृत्यांगनाएँ बहुत ही दुबली -पतली होती हैं। सिर पर लंबे और रंगीन पंखों जैसी पतली -पतली बेंत लगी रहती हैं। साथ में लाइव म्यूज़िक भी था। हमने दो घंटे के इस कार्यक्रम का खूब आनंद लिया।
चौथे दिन हमें रिसोर्ट में ब्रेकफास्ट के लिए आमंत्रण मिला साथ ही फ्री पैर के मसाज का कुपन दिया गया। यह रिसोर्ट की ओर से कॉम्लीमेंटरी था।
दो दिन हम आस – पास की कुछ और जगहों के दर्शन कर एथेंस के लिए रवाना हो गए।
हद तो तब हो गई जब पूरी छुट्टियाँ काटकर हम अपने घर लौटे। अभी हम टैक्सी से उतरकर लिफ्ट में कदम रखे ही थे कि मेरा फ़ोन बज उठा। उधर से हरविंदर सिंह जी हमारे कुशल पूर्वक घर पहुँचने की बात पूछने के लिए लंडन से फोन कर रहे थे।
सच में लोग परदेसी तो बन जाते हैं पर देश और भाषा दिलो- दिमाग़ में सुप्त रूप से बसे रहती हैं। सच में ऐसे लोग अपनी ज़मीं से जुड़े लोग होते हैं!!!!
© सुश्री ऋता सिंह
31/10/17
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