सुश्री ऋता सिंह
(सुप्रतिष्ठित साहित्यकार सुश्री ऋता सिंह जी द्वारा ई- अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए अपने यात्रा संस्मरणों पर आधारित आलेख श्रृंखला को स्नेह प्रतिसाद के लिए आभार। आप प्रत्येक मंगलवार, साप्ताहिक स्तम्भ -यायावर जगत के अंतर्गत सुश्री ऋता सिंह जी की यात्राओं के शिक्षाप्रद एवं रोचक संस्मरण आत्मसात कर सकेंगे। इस श्रृंखला में आज प्रस्तुत है आपका यात्रा संस्मरण – मेरी डायरी के पन्ने से…हमारी ग्रीस यात्रा – भाग 2)
मेरी डायरी के पन्ने से… – हमारी ग्रीस यात्रा – भाग 2
(अक्टोबर 2017)
क्रीट्स से एक सुखद, सुंदर, अविस्मरणीय यात्रा के पश्चात हम लोग एजीएन एयरलाइंस द्वारा एथेंस के लिए रवाना हुए। क्रीट से एथेंस का अंतर 198 माइल्स है। यहाँ पहुँचने में हमें 60 मिनट लगे होंगे लेकिन सामान लेकर बाहर आते, आते घंटा सवा घंटा हो ही गया।
यहाँ एक विषय पर विशेष प्रकाश डालना चाहूँगी कि हम जब अंतर्राष्ट्रीय एयर लाइन्स द्वारा यात्रा करते हैं तो प्रति यात्री 30/40 के.जी वज़न साथ ले जाने की इजाज़त होती है पर भीतरी स्थानीय एयर लाइन्स ज़्यादा सामान साथ ले जाने की इजाज़त नहीं देते। ऐसे समय पर कभी – कभी सामान अधिक होने पर अधिक रकम देने की आवश्यकता पड़ जाती है जो अपेक्षाकृत बहुत अधिक होती हैं। इसलिए लोकल फ्लाइट्स में जितना वजन ले जाने की सीमा निर्धारित होती है उसी के अनुपात से अपना सामान लेना चाहिए।
एथेंस में हमें कोई बड़ा रिसोर्ट नहीं मिला था जिस कारण हमने शहर के बीचो बीच एक अच्छे होटल में एक कमरा 5 दिन के लिए आरक्षित कर लिया था। यह शहर के बीच स्थित होटल था, जिसकी रिव्यू देखकर हमने भारत में रहते हुए ही बुक कर लिया था। जिस कारण हमें हर रोज़ यातायात के लिए आसानी रही। यहाँ नाश्ते के लिए बहुत अच्छी व्यवस्था थी, जिस कारण हम भरपेट नाश्ता करके ही सुबह नौ बजे घूमने के लिए निकल पड़ते थे।
होटल के बाहर निकलते ही बस की व्यवस्था थी। यहाँ बसों में सीनियर सिटीज़न के लिए बैठने की विशेष व्यवस्था होती है। जो भी दिव्यांग हैं उनके लिए भी अलग व्यवस्था होती है। लोगों में संवेदना आज भी जीवित है यह देखकर मन प्रसन्न हुआ।
स्थानीय लोग भ्रमण के लिए आए पर्यटकों के प्रति आदर भाव रखते हैं। अधिकतर लोग अंग्रेज़ी बोलने में सक्षम हैं जिस कारण हमें भ्रमण करते समय कोई असुविधा नहीं हुई।
एथेंस का इतिहास 2500 से अधिक वर्ष पुराना है। यहाँ पर रोमन्स का बड़ा प्रभाव रहा जिस कारण यहाँ रोमन्स द्वारा बनाए गए बड़े -बड़े मंदिर और मनोरंजन के स्थान दिखाई दिए।
एथेंस में घूमने की कई प्रकार की सुविधाएँ उपलब्ध हैं। सैलानी चाहें तो एक दिन चलकर शहर के विभिन्न हिस्से घूमकर देख सकते हैं, यह सस्ता होता है। एक गाइड के साथ दस -पंद्रह लोग साथ चलते हैं।
अथवा हॉप ऑन हॉप ऑफ बसों की व्यवस्था है जिसमें बैठकर शहर घूमा जा सकता है।
हॉप ऑन हॉप ऑफ बस में आपको दर्शनीय स्थानों का पेम्फ्लेट मिलता है साथ ही ईयर फोन दिया जाता है। अपनी सीट पर बैठकर प्रत्येक स्थान की जानकारी हासिल कर सकते हैं। एक बार बस में बैठ जाएँ तो आधा दिन बस में घूम लें और अपनी रुचि अनुसार जगहें मैप में चिह् नित कर लें। ये बसें गर्मी के मौसम में रात के आठ बजे तक चलती हैं और शीतकाल में छह बजे तक।
हमने पाँच दिन के लिए हॉप ऑन हॉप ऑफ की बस के टिकट ले लिए और पहले दिन बस में ही घूमते रहे। पाँच दिन के लिए टिकट लेने पर यह सस्ता पड़ता है। विदेश जाने पर एक -एक मुद्रा संभलकर खर्च करना आवश्यक होता है।
बस में बैठकर अगर सारा दिन घूमना है तो ऊपरी हिस्से में बैठें, इससे शहर अच्छी तरह से दिखाई देता है।
हम आधा दिन घूमने के बाद सबसे पहले जियस मंदिर देखने गए। विशाल परिसर में खंडित मूर्तियाँ और ऊँचे -ऊँचे खंभे दिखाई दिए। मंदिर के बाहर के हिस्से में किसी समय विशाल बगीचा रहा होगा जो अब सब तरफ से उजड़ा हुआ है। मंदिर का भीतरी परिसर बहुत विशाल है। एक साथ संभवतः हज़ार लोग प्रार्थना के लिए बैठ सकते थे। एक विशाल मंच जैसा स्थान था जिस पर जियस की कभी बहुत विशाल मूर्ति लगी हुई थी। जियस हमारे इन्द्र देव की तरह ही आकाश और बिजली के देवता माने जाते थे। ईसाई धर्म आने से पूर्व ग्रीस वासी इसी तरह मूर्तियों की पूजा करते थे।
इस विशाल और ऐतिहासिक स्थान का दर्शन कर हम बाहर आए और मंदिर के सामने वाले फुटपाथ पर कई कैफे थे हमने वहीं भोजन कर लिया। ये छोटे – छोटे रेस्तराँ होते हैं जहाँ लोकल फूड और कॉफी मिल ही जाते हैं। वहीं से बस ले ली।
हम बस की ऊपरी भाग में बैठे रहे, हम शहर देखने में मग्न थे। ठंडी बढ़ने लगी थी और अंधकार भी होने लगा था। हमें पता ही नहीं चला कि सारे लोग उतर गए और बस डीपो पर पहुँच गई। वहाँ उतरकर हम घबरा गए क्योंकि वह बिल्कुल ही अपरिचित – सी जगह थी। बस ड्राइवर ने शीतकालीन समय परिवर्तन की बात तब हमें बताई।
हम बस से उतरे और इधर -उधर देखने लगे। एक वृद् धा अपने घर लौट रही थी, उसे हमारी समस्या शायद समझ में आई। उसने तुरंत पास खड़ी टैक्सी से बात की और वह हमें होटल तक ले जाने के लिए तैयार हो गया। उस दिन हमें बड़ी रकम भी भरनी पड़ी। उस दिन शीतकालीन समय परिवर्तन का पहला ही दिन था और हम उसके शिकार हुए।
दूसरे दिन हम जल्दी नाश्ता करके बस पकड़कर हॉप ऑन हॉप ऑफ बस स्टॉप पर पहुँचे। हम उस दिन ओडेन ऑफ हीरॉडेस एलीकस देखने निकले थे। यह एक्रोपॉलिस पहाड़ी पर स्थित एक उत्सव का स्थान है। यहाँ पहुँचने के लिए काफी चलना पड़ता है। यह 174 ईसा पूर्व रोमन्स द्वारा बनाया गया मनोरंजन का स्थान था। यहाँ पाँच हज़ार लोग एक साथ बैठकर मनोरंजन के कार्यक्रम देखा करते थे। रॉयल परिवार तथा अन्य हाई ऑफिशियल के लिए खास सीटें होती थीं। सीटें संगमरमर की बनी थीं। पहाड़ी के ऊपर चढ़ने पर पूरा शहर वहाँ से देखा जा सकता है। 1955 में इस स्थान का पुनः निर्माण किया गया। पर्यटक इस स्थान को देखने अवश्य आते हैं।
इस स्थान को देखते हुए आधा दिन निकल गया। अब हमारा दूसरा लक्ष्य था ग्रीक पार्लियामेंट यहाँ चेंज ऑफ गार्ड्स प्रति घंटे होता है। इस स्थान को सिन्टेग्मा स्क्वेयर कहा जाता है। यह स्थान ग्रीस के लिए शहीद होने वाली सेनाओं की स्मृति स्थल है। यह एक अत्यंत दर्शनीय कार्यक्रम होता है। विशेष बैंड के साथ दो गार्ड्स बदले जाते हैं। ये गार्ड्स पारंपारिक वस्त्र पहनते हैं। ये गार्ड्स मूर्ति की तरह एक घंटा खड़े रहते हैं। प्रति घंटे शिफ्ट बदलती है। बड़ी संख्या में लोग इसे देखने एकत्रित होते हैं।
इस स्थान से थोड़ी दूरी पर रास्ता पार कर हम कुछ बीस -पच्चीस सीढ़ियाँ उतरे और वहाँ एक विशाल सुंदर बगीचा था। बगीचे में कई ग्रीक महान व्यक्तियों की मूर्तियाँ लगी हुई थी। बैठने के लिए भी पर्याप्त स्थान थे। शीतकाल में ग्रीस में सुंदर फूल खिलते हैं हमने उसका भी आनंद लिया।
तीसरे दिन हम प्लाका विलेज के लिए रवाना हुए। यह एक्रोपॉलिस पहाड़ के आस- पास की जगह है। यह एक छोटा गाँव नुमा स्थान है जहाँ छोटे-छोटे घर हैं। संकरी तथा पथरी पहाड़ की ओर चढ़ती हुई सड़कें हैं। मकान बहुत पुराने और कम ऊँचाई के हैं। यहाँ पर छोटा – सा चर्च है, विंडमिल है सोवेनियर के लिए दुकानें हैं और काफी पर्यटकों की भीड़ भी होती है। पहाड़ी की ऊपरी सतह की ओर छोटे-छोटे घर
अनाफियोटिका कहलाते हैं। 19वीं सदी में बड़ी संख्या में अनाफी द्वीप से मज़दूर आए थे। उन दिनों राजा का महल बनाने के लिए आए हुए मजदूरों के ये घर थे। आज भी वे घर उसी तरह बने हुए हैं पर सैलानियों के लिए एक दर्शनीय स्थल बन गया है।
इस पहाड़ी पर चढ़कर और उतर कर आते-आते आधा दिन निकल गया फिर हम बस में बैठकर नेशनल म्यूजियम देखने के लिए रवाना हुए।
यह आर्कियोलॉजिकल म्यूजियम था। पुरातत्व संग्रहालय। 8000 स्क्वेयर मीटर जमीन पर फैला विशाल संग्रहालय। देखने के लिए बहुत कुछ था। कई पुराने ढाल- तलवार, सेनाओं के अस्त्र – शस्त्र तथा पुराने युग में योद्धाओं को मरने पर गाड़ने की जो व्यवस्था थी वे बर्तननुमा पत्थर के कॉफिन भी रखे हुए थे। इन बर्तनों का आकार आज के जमाने के बाथटब जैसे हैं। उसी में मृत सेना को बिठाकर गाड़ देते थे। पुराने जमाने के सुंदर अलंकार यहाँ देखने को मिले। हजारों साल पहले के बर्तन घड़े, विभिन्न पीतल, तांबे के बर्तन आदि वस्तुएँ देखने को मिलीं। संगमरमर की तराशी गई मूर्तियाँ भी थीं।
चौथे दिन हम एक्रोपॉलिस संग्रहालय देखने के लिए गए। विशाल परिसर में फैला भव्य आधुनिक संग्रहालय। यह संग्रहालय 2009 में ही बनाया गया। इसकी फर्श संपूर्ण पारदर्शी काँच की बनी है। जब हम उस पर चलते हैं तो नीचे उत्खनन के समय मिला 2500 वर्ष पुराना शहर दिखाई देता है। उसे अलग से देखने जाने की आवश्यकता नहीं होती, न ही कोई व्यवस्था है। इन शहरों को काँच की फ़र्श से ही देखा जा सकता है। कई मंजिली इस विशाल संग्रहालय में हज़ारों वर्ष पूर्व की सभ्यता की निशानी दिखाई देती है। ग्रीक निवासी कई देवताओं की पूजा करते थे उनकी मूर्तियाँ हैं।
मेड्यूसा नामक एक अंधी स्त्री की कथा हम लोग बचपन में पढ़े थे, जिसके सिर पर सौ सर्प थे और वह जिसकी ओर अपना सिर घुमाती वह पत्थर का बन जाता। उस मूर्ति के कटे सिर को वहाँ देखकर मन हर्षित हुआ। कहा जाता है कि मेड्यूसा की मृत्यु एक विशिष्ट प्रकार की तलवार से धड़ से गर्दन अलग करके ही करना संभव था। वह लोगों को पत्थर में बदल डालती थी। उस देश के प्रसिद्ध राजाओं की मूर्तियाँ भी वहाँ देखने को मिलीं।
अगले दिन हम हार्डियेन्स आर्च देखने के लिए गए। इसे हार्डियेन्स गेट भी कहा जाता है। यहीं से सीधी सड़क जीएस के मंदिर तक भी जाती है। यहाँ सड़कें अति सुंदरहोती हैं। रास्ते में कहीं -कहीं पर पौधे लटकाए हुए दिखते हैं। लोग अनुशासन प्रिय हैं। मिलनसार भी।
कहा जाता है कि हार्डियेन्स नामक राजा जो रोमन था उसने एथेंस राज्य की स्थापना की थी। हार्डियेन्स राजा के प्रति सम्मान दर्शाने हेतु इस आर्च का निर्माण किया गया था। इसका निर्माण ईसा पूर्व 131 – 132 में किया गया था। हार्डियेन्स ने एथेंस शहर में कई मंदिर भी बनवाए थे। वह शांति प्रिय राजा था। यह घटना ईसाई धर्म के पूर्व की है जब मंदिर निर्माण को सभी राजा महत्व दिया करते थे। कहा जाता है कि इस आर्च के बनने से बाहर से आने वाले अन्य आतताइयों का आक्रमण बंद हो गया था। यह संगमरमर से बना हुआ है। इसकी ऊंचाई 18 मीटर है।
दोपहर के बाद हम पोसाएडन मंदिर देखने गए। आज इसका भग्नावशेष ही है पर पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र है। पोसायडन समुद्र के देवता माने जाते थे। ग्रीक्स और रोमन के व्यापार, यातायात जल मार्ग से ही विशेष रूप से होता था। अतः वे इस देवता का दर्शन करना उचित समझते थे।
यहाँ एक बात का विशेष उल्लेख करना चाहूँगी कि हमारे देश में चंद्रगुप्त मौर्य के समय से भी पहले से ग्रीक्स के निवासियों का व्यापार-व्यवसाय के लिए भारत में आना -जाना प्रचलित रहा। इन्हें हम यूनानी कहा करते थे और ग्रीस यूनान के नाम से जाना जाता था। आज हमारे पास पोरस का कोई इतिहास उपलब्ध नहीं है। मगर यूनान में पोरस के युद्ध की जानकारी उपलब्ध है। साथ ही इस यातायात के कारण यूनानियों ने हमसे अर्थात भारतीयों से मंदिर बनाने की कला तथा अलग-अलग देवताओं को पूजने की कला भी सीखी थी, जिस कारण उनके देश में भी इंद्र जैसे देवता, समुद्र देवता, वरुण देवता, अग्निदेवता आदि की कल्पना की गई थी। आज भले ही सब ईसाई धर्म के अनुयायी हों लेकिन अगर हम इतिहास के पन्नों को पलट कर देखें और इन स्थानों का दर्शन करें तो इसमें भारतीय संस्कृति के पुट स्पष्ट नज़र आते हैं।
पोसाएडन मंदिर के परिसर में खड़े होकर समुद्र में डूबते सूर्य का दर्शन अत्यंत आकर्षक होता है। भारत में हम कन्याकुमारी में ऐसे अद्भुत दृश्य का आनंद ले सकते हैं।
सूर्यास्त के पश्चात हम होटल लौटकर आए। थोड़ी देर विश्राम करके वहीं भोजन करके हम रात के दस बजे होटल के सामने से ही चलने वाली बस में अपना सामान लेकर बैठे और डेढ़ घंटे के बाद रात के समय ग्रीस शहर की जगमगाहट का दर्शन करते हुए अंतरराष्ट्रीय हवाई अड् डा एलेफथेरियोस वेनिज़ेलोस पहुँचे। होटल से बस द्वारा हवाईअड् डे तक कम खर्च में पहुँचना हमारे लिए तो बिन माँगे मोती मिले जैसा आनंद था। अगर टैक्सी से जाते तो भारी रकम यूरो के रूप में देना पड़ता। हम बारह बजे तक चेक इन कर बेफ़िक्र हो चुके थे। हमारी फ्लाइट प्रातः चार बजे थी।
आज जब अपनी इन यात्राओं को याद करती हूँ तो रोमांचित हो उठती हूँ। सारे दृश्य चलचित्र की भाँति आँखों के सामने उभर उठते हैं। हम फिर उनका आनंद ले लेते हैं।
(ग्रीस की इस सजीव रोमांचक यात्रा के पश्चात अगले सप्ताह पढ़िये उत्तर-पूर्व के प्राकृतिक स्थल काजीरंगा यात्रा का सजीव वर्णन…)
© सुश्री ऋता सिंह
फोन नं 9822188517
ईमेल आई डी – ritanani [email protected]
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
[…] Source link […]