श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी “अहम पर कुछ दोहे…. आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 178 ☆

☆ “अहम पर कुछ दोहे…”  ☆ श्री संतोष नेमा ☆

अहम करे किस बात का, हे मूरख इंसान

क्यों जमीर को मारता, पाल पोष अभिमान

धन, दौलत, वैभव सभी, कभी न देते साथ

अंत समय सब छोड़कर, जाना खाली हाथ

छोटा हो या हो बड़ा, हो कोई इंसान

अहम पालता जो सदा, उसका गिरता मान

रखें बड़प्पन चित्त में, मन में उच्च विचार।

सबके प्रति सद्भावना,  प्रियता का व्यवहार।।

खुद की महिमा का कभी, खुद मत करें बखान

बड़बोलापन छोड़िये, गिरता उससे मान

अहम पाप का मूल है,  रहें अहम से दूर।

सहज सरल होकर करें, परहित कार्य जरूर।।

पाकर पद अधिकार जब,  बिगड़े चाल चरित्र।

काम, क्रोध, मद, लोभ तब, बनते कपटी मित्र।।

अहम सदा ले डूबता,  करता मति विध्वंस।

बचे न कोई देखलो, रावण, कौरव, कंस

जीवन में यदि चाहिए, शांति परम संतोष

छोड़ें कभी न नम्रता, नाहक  करें न रोष

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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