आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’
(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि। संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक नवगीत “सॉनेट – महर्षि महेश योगी”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 148 ☆
☆ नवगीत – शब्दों की भी मर्यादा है ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆
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हल्ला-गुल्ला, शोर-शराबा
क्यों उल्लास-ख़ुशी हुडदंगा?
शब्दों का मत दुरूपयोग कर.
शब्द चाहता यह वादा है
शब्दों की भी मर्यादा है
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शब्द नाद है, शब्द ताल है.
गत-अब-आगत, यही काल है
पल-पल का हँस सदुपयोग कर
उत्तम वह है जो सादा है
शब्दों की भी मर्यादा है
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सुर, सरगम, धुन, लय, गति-यति है
समझ-साध सदबुद्धि-सुमति है
कर उपयोग न किन्तु भोग कर
बोझ अहं का नयों लादा है?
शब्दों की भी मर्यादा है
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© आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’
१४-१२-२०१६, जबलपुर
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