डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपका भावप्रवण गीत – दूर रहो तुम तन से…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 149 – गीत – दूर रहो तुम तन से…
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दूर रहो तुम तन से
कह दूँगा मैं मन से।
समझ नहीं पाया हूँ अब तक
पाप पुण्य की परिभाषा
देह गेह में जलती रहती
अनलमुखी सी अभिलाषा |
वरुण लता सी कांति तुम्हारी
रखना दूर अगन से।
ज्वालामुखी खौलता मुझमें
शांत कौन कर पायेगा
किसको गरज पड़ी है ऐसी
जो मल्हार सुनायेगा
चर्चा राग रागिनी वाली
कहाँ किसी निर्धन से।
कृष्ण न लौटें
मथुरा से पर
राह तकेंगी ब्रज बाला
अनुभरी आँखों के पीछे
झाँक रहा मुरली वाला
साँसों का संगीत उठा है
मन के वृन्दावन से।
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© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
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