श्री आशिष मुळे

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात # 9 ☆

 ☆ कविता ☆ “हां, हैं हम शायर…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

हमारी मुहब्बत है शायरी

कागज को प्यार में भिगोते हैं शायर

कागज के पीछे तो छिपते हैं कायर ।

 

शायरी है वो प्यार हमारा

चाहे नाराज क्यों ना हो जमाना

है ऐसी मुहब्बत जिसे छिपाते नहीं हैं

खयाल छपवाने में  झिझकते नहीं हैं ।

 

एक मशाल है शायरी

या है एक दिया शायरी

किसी का दर्द है शायरी

किसी का एहसास है शायरी ।

 

इसे सिर्फ अल्फ़ाज़ ना समझना

कागज के आसमां में

सुलगता सूरज है शायरी

जलते हुए दिल में

महकता चांद है शायरी ।

 

अंधे इंसान की रोशनी है

गुफ़ा से बाहर का रास्ता है

पांव से तो चींटी भी चलती है

कलाम से तो उड़ना जन्नत तक है।

 

हाँ, हैं हम शायर

हमारी मुहब्बत है शायरी…

© श्री आशिष मुळे

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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