श्री एस के कपूर “श्री हंस”
☆ हाइकु ☆ ।। क्रोध/गुस्सा ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆
।।पांच।।वर्ण 5=7=5 पंक्ति अनुसर।।
[1]
क्रोध आग है
खुद का घर जले
वह दाग है।
[2]
बुद्धि हरण
गुस्से में धैर्य नष्ट
दोस्ती क्षरण।
[3]
दंभ से क्रोध
घृणा ईर्ष्या ओ द्वेष
होए न बोध।
[4]
क्रोध शत्रु है
स्वयं का नुकसान
जैसे मृत्यु है।
[5]
अधीरता है
गुस्से का भी कारण
न वीरता है।
☆
© एस के कपूर “श्री हंस”
बरेली
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