श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा – “फांस)

☆ लघुकथा ☆ “फांस” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय 

शील, मर्यादा लिए त्रिशा की सगाई हुई। फिर  खूब धूमधाम से स्वराज साथ शादी हुई।

त्रिशा विवाह के दूसरे दिन सुबह 7 बजे सोकर अपने कमरे से बाहर निकली, त्यों ही ड्राइंगरूम में बैठी सास की कड़क आवाज सुनाई दी…

“अब ये देर से सोकर उठने का तरीका नहीं चलेगा।” 

लाड़ प्यार में पली प्रतिभाशाली त्रिशा को जैसे सांप सूंघ गया। उसे लगा पेड़ों की जड़ों में चोट लगने से शाखाएं इसीलिए सूख जातीं हैं।

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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