श्री आशिष मुळे
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात # 10 ☆
☆ कविता ☆ “बाबाजी प्रणाम…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆
बाबाजी प्रणाम,
मगर हमे धरम ना सिखाइये
जिंदगी ने इतना सिखाया है
अब आप कष्ट ना लीजिये।
बाबाजी, कभी बच्चे पालकर तो देखो
या जाके पूछो उस माँ से
एक तप का समय कितना होता है
और कहते तपस्या किसे है ?
बाबाजी, कभी शादी करके देखिए
या कभी किसी बाप से पूछिए
संयम किसे कहते है
और विरक्ति कैसे हासिल होती है ।
बाबाजी, हमें रंग की बाते ना बताइए
सब रंग तो हम संसार में देखते है
आपके हाथ में एक रंग की झोली है
हमारे लिए तो हर दिन एक होली है ।
बाबाजी, – तेज, ओज और प्राण की बातें ना करिए
हम तो लड़ने वाले लोग हैं
ये तीनों तो रोज शाम खोते हैं
मगर अगली सुबह वापस पाते हैं।
बाबाजी, संसार ही एक सन्यास है
आप सन्यास में संसार ना करिए
प्रणाम बाबाजी,
अगली बार मुझे ‘सुनो बेटा‘ ना कहिए
एक बाप हूँ मैं, जरा इज्जत देना भी सीखिए।
© श्री आशिष मुळे
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈