प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित बाल साहित्य ‘बाल गीतिका ‘से एक बाल गीत  – “हमारा वतन…” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

 ☆ बाल गीतिका से – “हमारा वतन 🇮🇳” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

हमको प्यारा है भारत हमारा वतन

सारी दुनिया का सबसे सुहाना चमन

हम हैं पंछी ये गुलशन यहाँ बैठ मन

चैन पाता सजाता नये नित सपन ।

इसकी माटी में खुशबू है एक आब है

जैसे काश्मीर, दो आब, पंजाब है

इसकी धरती है चंदन, सुहाना गगन

धन भरे खेत खलिहान, मैदान, वन।

इसकी तहजीब का कोई सानी नहीं

जो पुरानी  होकर भी पुरानी नहीं

हर डगर-बिखरा मिलता यहाँ अपनापन

 प्रेम, सद्भाव संतोष है जिसके धन ।

हवा पानी में मीठी मोहब्बत घुली

 जिंदगी यहाँ है गंगाजल में घुली

फूल सा है खिला मन, खुला आचरण

सद् समझ, ईद होली बैसाखी मिलन ।

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

vivek1959@yahoo.co.in

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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