श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ “जय प्रकाश के नवगीत ” के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “हमारी आस्थाएँ…” ।)
जय प्रकाश के नवगीत # 21 ☆ हमारी आस्थाएँ… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆
हल नहीं मिलता
किसी भी प्रश्न का
हो गईं बहरी हमारी आस्थाएँ।
दिन उगा सूरज लिए
शाम को फिर ढल गया
और अपनी अस्मिता को
कोई आकर छल गया
डूबते तिनके
मिले हर बार ही
चुक गईं या मर गईं संभावनाएँ।
हो रहे गहरे अँधेरे
साँस हर पल जागती है
रात के अंधे कुए में
भोर उजली चाहती है
मौन पीती
आँख अश्रु से भरीं
निरर्थक सब हो गईं हैं प्रार्थनाएँ ।
टेरते ही रह गए हम
भागते से अवसरों को
वक्त के हाथों पिटे
देखा किए बाजीगरों को
खेल के मोहरे
ही बनकर रह गए
दफ़्न होकर रह गईं सब कामनाएँ ।
***
© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)
मो.07869193927,
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈