श्री राकेश कुमार
(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” आज प्रस्तुत है आलेख की शृंखला – “देश -परदेश ” की अगली कड़ी।)
☆ आलेख # 49 ☆ देश-परदेश – जाम ☆ श्री राकेश कुमार ☆
कल एक मित्र से आवश्यक कार्य था, इसलिए उसे सुबह फोन किया और पूछा क्या कर रहे हो, उसने बताया ब्रेड के साथ जाम ले रहा हूं। सुनकर मेरा माथा ठनका सुबह-सुबह ही जाम।
दोपहर को पुनः उसको फोन किया तो बोला धूप में जाम के मज़े ले रहा हूं। मैने फोन काट दिया। शाम को उसको फिर से फोन किया तो बोला बाद में बात करना, अभी जाम में हूं। परेशान होकर रात्रि फिर से नो बजे फोन किया तो वो बोला, भाई अभी तो जाम चल रहा है, कल बात करेंगे।
वाह रे जाम तेरे कितने नाम! वाह रे़ जाम तेरे कितने काम!!
© श्री राकेश कुमार
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