श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना “वृन्त से झर कर कुसुम…”। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ वृन्त से झर कर कुसुम… ☆
हार तो हार होती है, पर यदि सही चिंतन किया जाय तो ये हार हार में बदल कर आपके गले की शोभा बनेगी। आवश्यकता है, तो केवल सकारात्मक दृष्टिकोण की अपनी असफलताओं से विचलित होने के बजाए ये सोचना चाहिए कि हम किस बिंदु पर कमजोर हैं, कहाँ सुधार किया जाना चाहिए।
हार से उदास होकर या जीत से खुश होकर जो लोग चुपचाप बैठे जाते हैं, उनकी सफलता का ग्राफ वहीं रुक जाता है। अतः जिस तरह दिन- रात का क्रम अनवरत चलता रहता है, ठीक उसी प्रकार आपकी कर्म गति भी निरंतर चलती रहनी चाहिए। सूर्य ग्रहण या चन्द्र ग्रहण प्रकृति के चक्र का एक हिस्सा हैं, पर ये कभी दिन- रात की प्रक्रिया में बाधक नहीं बनते। पूरे दृढ़ निश्चय के साथ अपने कार्यों को करते रहें एक न एक दिन मंजिल आपके कदमों में होगी और लक्ष्य आपके माथे का गौरव बन आपके उज्ज्वल भविष्य की राह प्रशस्त करेगा।
हिम्मत से करना सदा, जीवन में सब काज।
राहें गर हों सत्य की, मुश्किल नहीं सुकाज। ।
अक्सर ऐसा होता है, आप किसी के लिए लड़ रहे होते हैं परन्तु लोग आपको ही दोषी बना देते हैं, यहाँ तक कि उस व्यक्ति के भी आप अपराधी बन जाते हैं, तो इस स्थिति में क्या हम नेकी करना छोड़ दें, जो सच है उसका साथ न दें, देखकर भी अनजान बने, स्वविवेक को भूल केवल नजरें झुका कर अपना दायित्व निर्वाह करें…?
ये सब बहुत ही साधारण से प्रश्न हैं जिनसे लगभग सभी व्यक्तियों को आये दिन गुजरना पड़ता है, कुछ तो टूट कर राह बदल लेते हैं, कुछ मौन हो अपना कार्य करते रहते हैं, कुछ अपमान की आग में जलते हुए बदला लेने की फ़िराक में रहते हैं।
इनमें से आप कौन हैं ?ये तय करें फिर पूरी दृढ़ता से अपने कार्य के प्रति प्रतिबद्धता रखते हुए सफलता की सीढ़ी को देखें और लोग क्या कहेंगे, करेंगे या सोचेंगे इसे भूल कर अपना अस्तित्व तलाशें, इस मानव जन्म को सार्थक करें। अपने भविष्य के निर्माता आप स्वयं हैं इसलिए केवल लक्ष्य देखें मान अपमान से परे जाकर।
© श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
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