श्री आशिष मुळे
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात # 14 ☆
☆ कविता ☆ “बह जाने दो…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆
ये सितम है, या है
कोई गिरते सितारे
पत्थर है या, है फूल
यू मोल इनके ना तोलो
आंसुओं को मेरे तुम
यूं हीं बह जाने दो….
ये पानी है बस, या है
ना समझी ज़ुबानी
प्यार है या, है जरूरत
बहस ये तुम ना छेड़ो
आंसुओं को मेरे तुम
यूं हीं बह जाने दो….
टूटते पहाड़ों की यूं
तस्वीरें ना बनाओ
आंसुओं से मेरे
रंग उनमें ना डालो
आंसुओं को मेरे तुम
यूं हीं बह जाने दो….
मेरी हार को यूं
अपनी जीत ना समझो
इन फूलों का हार
अपने गले में ना पहनो
कहीं गले से उतरकर
दिल को ना छू दो
बीमारी हमारी कहीं
अपनी ना बना दो
आंसुओं को मेरे तुम
यूं हीं बह जाने दो….
© श्री आशिष मुळे
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈