श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी समसामयिक घटना पर आधारित एक भावप्रवण कविता “# रक्षाबंधन… #”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 146 ☆

☆ # रक्षाबंधन#

रेशमी धागों से बनती है राखियां

भाई के कलाईयों पर बंधती है राखियां

वर्षभर इस पल के इंतजार में

बहनें, प्रेम से बुनती है राखियां

देश या परदेश में हो उसका भाई

आज सुबह से उसकी याद है आई

हर रक्षाबंधन पर मिलने का वादा किया था

जब मायके से उसकी हुई थी बिदाई

महीना भर पहले उसने भेजी थी राखी

क्या पता भाई को मिली या नही राखी ?

अभी तक कोई संदेशा नही आया

व्याकुल है बहन, क्या नही मिली होगी राखी ?

कहीं भाभी ने छुपा ना लिया हो

राखी को भैया को ना दिया हो

भाभी से थोड़ी सी खटपट हुई थी

कहीं भाभी ने उसका बदला ना लिया हो

तरह तरह के विचार उसे आ रहे है

अंदर ही अंदर प्राण खा रहे है

सुबह से बैठी है इंतजार में

भैया फोन भी क्यूं नहीं उठा रहे है ?

भाई के लिए यह आरती सजी है

बहना भी कुछ सजी-धजी है

जब निराश हो ग ई वो राह देखते

तभी दरवाजे की बेल बजी है

जब दरवाजे पर आया उसका भाई

उसकी आंखें अश्रुओं से भर आई

भाई से लिपट गई वो खुशी खुशी से

वो मुस्कुराई जैसे मिली हो खुदा की खुदाई

भाई ने विधि विधान से राखी बंधाई

बहना के सर पर हाथ रखकर, मिठाई खाई

रक्षा करने का वचन देकर

भाई ने अपनी भेंट बहना को थमाई

यूंही अमर रहे सदा भाई-बहन का प्यार

उनके जीवन में हो स्नेह और दुलार

दुःख उन्हें कभी छू भी ना पायेगा

रक्षाबंधन है इसी पवित्र रिश्ते का त्योहार/

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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