(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है शिक्षक दिवस पर एक विशेष कविता  – प्रणाम गुरू जी !)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 228 ☆

? शिक्षक दिवस विशेष – प्रणाम गुरू जी ! ?

साक्षरता सरगम जीवन की

अ आ इ ई ज्ञान कराया, तुमने,  तुम्हें प्रणाम गुरू जी

 

धन ऋण गुणा भाग जीवन के

भले बुरे का भान कराया, तुमने, तुम्हें प्रणाम गुरू जी

 

शिक्षा बिन पशुवत् है जीवन,

दे शिक्षा इंसान बनाया, तुमने,  तुम्हें प्रणाम गुरू जी

 

भाषा, दृष्टि नई, सृष्टि की

गणित और विज्ञान सिखाया, तुमने, तुम्हें प्रणाम गुरू जी

 

क्षण भंगुर नश्वर है जीवन

जीवन का इतिहास बताया, तुमने, तुम्हें प्रणाम गुरू जी

 

जीवन में भटकाव बहुत है,

अंधकार में मार्ग दिखाया, तुमने, तुम्हें प्रणाम गुरू जी

 

अंतिम सत्य मुक्ति जीवन की,

धर्म और अध्यात्म पढ़ाया, तुमने,तुम्हें प्रणाम गुरू जी 

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798

ईमेल [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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