श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ “जय प्रकाश के नवगीत ” के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “सूखे मौसम का गीत…” ।)
जय प्रकाश के नवगीत # 23 ☆ सूखे मौसम का गीत… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆
हवाओं की चाल टेढ़ी
नहीं है मौसम सुहाना
बेसुरा गाने लगे बादल।
धरा सूखे वसन लेकर
नदी के तट पर खड़ी है
छन रही है छानियों से
धूप आँगन में पड़ी है
छाँव तक खोजे ठिकाना
बहुत तरसाने लगे बादल।
मेंड़ पर बैठे उपासे
खेत करते हैं जुगाली
धान के पौधे उनींदे
सो गए रखकर कुदाली
दुख उभर आया पुराना
उमर उलझाने लगे बादल।
तरस खाकर आ गया है
भीगी यादें लिए सावन
आँसुओं की पकड़ उँगली
झर रही है प्रीत पावन
मोल राखी का चुकाना
भूल,भरमाने लगे बादल।
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© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)
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