प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित बाल साहित्य ‘बाल गीतिका ‘से एक बाल गीत  – “अपना भारत…” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

 ☆ बाल गीतिका से – “अपना भारत” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

अपना भारत है सबसे पुराना दुनिया का एक अद्भुत खजाना

पेड़, पर्वत, नदी और नाले, खेत, खलिहान वन सब निराले

यहीं गंगा है औ’ वह हिमालय जिसको दुनिया ने बेजोड़ माना ॥

इसकी धरती उगलती है सोना, कला हाथों का मानो खिलौना

आज नई रोशनी में भी दिखता इसका इतिहास सदियों पुराना ॥

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जो विदेशों से भी यहाँ आये,  वे भी बस गये, रहे न पराये

लोगों में है मोहब्बत कुछ ऐसी, जानते सबको अपना बनाना ॥

गाँवों में आज भी है सरलता, नगरों में तो है नव युग मचलता ।

बढ़ते – विज्ञान को भी हमें ही प्रेम का रास्ता है दिखाना

गाँधी-नेहरू का जैसा था सपना, बनाना वैसा भारत है अपना ।

 हमें मिल जुल के बढ़ना है आगे, देखकर के बदलता जमाना ॥

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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