श्री जय प्रकाश पाण्डेय
(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में सँजो रखा है । प्रस्तुत है साप्ताहिक स्तम्भ की अगली कड़ी में उनकी एक भावप्रवण कविता “घर के बारे में”। आप प्रत्येक सोमवार उनके साहित्य की विभिन्न विधाओं की रचना पढ़ सकेंगे।) \
☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 30 ☆
☆ कविता – घर के बारे में ☆
घर का क्या है…..
घर के दरवाजे का रास्ता,
सारे जहाँ को नापता हुआ,
घर तरफ लौट आता है,
उसके किवाड़ की सांकल,
घर होने का अहसास देती है,
घर का क्या है……
उसके खिड़की के परदे,
मदहोश से पड़े रहकर भी,
घर और बाहर के संबंध की,
भरपूर छानबीन करते रहते हैं,
उसकी छत घर की ऊंचाई का,
सही हिसाब किताब बताती है,
घर का क्या है……..
कभी वह घर जैसा और,
कभी वह नहीं जैसा लगता है,
घर से घर जैसा घर बनता है,
और घर से घर टूटता है,
कभी घर का जोगिया भी,
आन गांव का सिद्ध होता है,
घर का क्या है…….
घर में दबे पांव ही सही,
कोई भी तो घुस सकता है,
मिट्टी का पुतला ही सही,
पर वह घर का तो होता है,
घर का क्या है…….
घर से डर भी लगता है,
घर में डराया भी जाता है,
कुछ नहीं होता यदि घर,
घर में घरोबा होता है,
पर ये भी सच है कि,
घर में कुछ भी हो सकता है,
© जय प्रकाश पाण्डेय