श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा “रात का चौकीदार” महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है एक विचारणीय कविता “अजब गजब रोटी की माया…” । )
☆ तन्मय साहित्य #199 ☆
☆ अजब गजब रोटी की माया… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆
(कहीं पढ़ी गयी एक घटना से प्रेरित एक सरल सी किंतु विचारणीय रचना)
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बड़ी दूर से बंदर आया
रोटी एक हाथ में लाया
हर्षित, रोटी देख बंदरिया
बंदर भी खुश हो मुस्काया।
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आधी-आधी, लगे बाँटने
तब, रोटी ने खेल दिखाया
छपी हुई, फोटो रोटी की
कागज पर,रोटी की छाया।
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बेचारी, बन्दरिया भूखी
भूखा बन्दर भी मुरझाया
रोटी का चक्कर अजीब है
रोटी ने जग को भरमाया।
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चित्र छपे रोटी का कागज
पढ़वाने का मन में आया
पहुँचे दोनों सुबह कचहरी
किंतु नहीं कोई पढ़ पाया,
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दफ्तर-दफ्तर भटके दोनों
सब के सम्मुख दुखड़ा गाया
नहीं निदान भूख, रोटी का
कोई भी अब तक कर पाया।
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आखिर कागज की रोटी को
असल समझ दोनों ने खाया
चले कमाने अगले दिन फिर
अजब-गजब रोटी की माया।
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© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश
मो. 9893266014
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈