हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 33 – मित्रता ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

 

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य  शृंखला में आज प्रस्तुत हैं  – एक  भावप्रवण लघुकथा  “मित्रता”।  मित्रता किसी से भी हो सकती है।  यह एक ऐसा रिश्ता है जिसमें भावना प्रधान है जो पूर्णतः विश्वास पर टिका है। इस सन्दर्भ में मुझे मेरी गजल की  दो पंक्तियाँ याद आ रही हैं ।

सारे रिश्तों के मुफ्त मुखौटे मिलते हैं जिंदगी के बाजार में 

बस अच्छी दोस्ती के रिश्ते का कोई मुखौटा ही नहीं होता

अतिसुन्दर लघुकथा के लिए श्रीमती सिद्धेश्वरी जी को हार्दिक बधाई।

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 32 ☆

☆ लघुकथा – मित्रता ☆

अचानक तबीयत खराब होने से मीना को तत्काल अस्पताल पहुंचाने वाला, उसका अपना मित्र ही था सुधांशु।

दो परिवार आस-पास रहते हुए हमेशा दुख सुख में साथ निभाते थे। कुछ भी ना हो पर दिन में एक बार जरूर बात करना मीना और उसके दोस्त सुधांश की दिनचर्या थी। दोनों का अपना परिवार था परंतु मीना की दोस्ती सुधांश से ज्यादा थी क्योंकि, दोनों के विचार मिलते-जुलते थे। आस पड़ोस में भी लोग इन दोनों की निश्छल दोस्ती की मिसाल देते थे।

अस्पताल में पेट का ऑपरेशन हुआ। ठीक होने के बाद छुट्टी होने पर घर आने के लिए मीना तैयार हुई अस्पताल से निकलकर गाड़ी तक आने के लिए बहुत परेशान हो रही थी क्योंकि, अभी पेट में टांके लगे हुए थे और दर्द भी था। धीरे-धीरे चल कर वह बाहर निकल कर आई।  पतिदेव भी साथ ही साथ चल रहे थे,,हाथों का सहारा देकर। सामने खड़ी गाड़ी पर बैठना था।

परंतु यह क्या?? अतिक्रमण के कारण सभी बाउंड्री और अस्पताल के बाहर बना दलान तोड़ दिया गया था। और सड़क और अस्पताल के फर्श के बीच बहुत ऊंचाई अधिक थी।

मीना ने कहा… मैं इतने ऊपर से नहीं उतर पाऊंगी। पतिदेव थोड़ी देर रुक कर बोले….. कोशिश करो तुम उतर सकती हो। मीना ने नहीं में सिर हिला दिया। पतिदेव ने कहा.. रुको मैं इंतजाम करता हूं, और इधर-उधर देखने लगे । मीना का दोस्त सुधांशु भी साथ में था। वह मीना को बहुत परेशान और दर्द में देख कर दुखी था।

तुरंत दोनों घुटने मोड़ कर बैठ गया और कहा….. तुम मेरे पैर पर पैर रखकर सड़क पर उतर जाओ। मीना ने धीरे से सुधांश के मुड़े पैरों पर अपना पांव रखा और सड़क पर उतर गई। फिर धीरे धीरे गाड़ी तक पहुंच गई। पतिदेव देख रहे थे।

आज मीना को अपने दोस्त पर बहुत गर्व था और सुधांश के आंखों में खुशी के आंसू। सच्ची मित्रता कभी भी कहीं भी गलत नहीं होती।

 

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश