डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपका भावप्रवण गीत – बहुत बहुत कहना है तुमसे…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 156 – गीत – बहुत बहुत कहना है तुमसे…
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बहुत बहुत कहना है तुमसे
सोच सोच कर रह जाता हूँ।
यह कहना है वह कहना है
मर्यादा के कूल कगारे-
तटवर्ती होकर वहना है।
केवल यही देखना है अब
कितनी गति है, लय है।
उस दिन क्या सोचा था किसने
जिस दिन पहली बार मिले थे
बर्लिन की दीवार खिंची थी
हम तुम दो दुर्भेच किले थे।
अब है निर्मल पवन प्रवाहित
अपना नील निलय है।
आँखों में सपन सलौने हैं
सपने क्या हैं, मृगछौने हैं
कैसे खुएँ तुम्हारा आँचल
जन्मजात ही हम बौने हैं।
जो जैसा है, सब तेरा है,
यह व्यक्तित्व विलय है।
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© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
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