सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा
(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जीसुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी कविता “बरसात”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 23 ☆
मैं
तुम्हारे जाने के ग़म में
कोई ग़ज़ल नहीं लिखूंगी,
न ही अपने एहसासों को पिरोकर
कोई नज़्म ही लिखूँगी,
न ही अपनी ख्वाहिशों को
किसी समंदर में डूब जाने दूँगी,
न ही अपनी आरज़ू की
हस्ती मिटने दूँगी!
तुम आई ही हो
मुझे चंद घड़ियों की ख़ुशी देने के लिए,
और मैं इस वक़्त को
अपनी यादों की संदुकची में
बांधकर रख दूँगी!
सुनो, ए बरसात!
तुमको तो जाना ही था
और मैं यह जानती थी ;
पर जब तक तुम थीं
तुमने मुझे बेपनाह मुहब्बत दी
और बस मैंने इन लम्हों को
जिगर में छुपाकर रख दिया है!
वैसे भी
तुम तो बरसात हो…
अगले साल तो तुमको
आना ही होगा, है ना!
© नीलम सक्सेना चंद्रा
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