प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी द्वारा रचित एक ग़ज़ल – “कोई किसी का सच्चा साथी यहाँ कहाँ है ?” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ ग़ज़ल – “कोई किसी का सच्चा साथी यहाँ कहाँ है ?” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆
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हमें दर्द दे वो जीते, हम प्यार करके हारे,
जिन्हें हमने अपना माना, वे न हो सके हमारे।
ये भी खूब जिन्दगी का कैसा अजब सफर है,
खतरों भरी है सड़के, काटों भरे किनारें।।
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है राह एक सबकी मंजिल अलग-अलग है,
इससे भी हर नजर में हैं जुदा-जुदा नजारे।
बातें बहुत होती हैं, सफरों में सहारों की
चलता है पर सड़क में हर एक बेसहारे।
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कोई किसी का सच्चा साथी यहाँ कहाँ है ?
हर एक जी रहा है इस जग में मन को मारे।
चंदा का रूप सबको अक्सर बहुत लुभाता,
पर कोई कुछ न पाता दिखते जहां सितारे।
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देखा नहीं किसी ने सूरज सदा चमकते
हर दिन के आगे पीछे हैं सांझ औ’ सकारे।
सुनते हैं प्यार की भी देते हैं कई दुहाई।
थोड़े हैं किंतु ऐसे होते जो सबके प्यारे।
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© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी भोपाल ४६२०२३
मो. 9425484452
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈