श्री श्याम खापर्डे
(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी समसामयिक घटना पर आधारित एक भावप्रवण कविता “# झुंड… #”)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 150 ☆
☆ # झुंड… # ☆
हम तमाम उम्र जिन वंचितों के हक के लिए लड़े
जब कुछ भी ना बदल सके तो
आंसू निकल पड़े
सब कुछ लगाया दांव पर
धूप ही मिली,
नहीं मिली छांव पर
पसीने से तरबतर रहे
भीषण गर्मी में खड़े
बुल-डोजरों ने बस्तियां उजाड़ दी
बसी बसाई गृहस्थियाँ उजाड़ दी
सब मूकदर्शक बने हुए है
वो गरीब किस किस से नही लड़े
ना सर पर छत है, ना रोजगार है
चारों तरफ महंगाई की मार है
भूख से बिलखते बच्चे
तड़प रहें है पड़े पड़े
आंखों में विलाप है
जीवन है या अभिशाप है
यह जीना कोई जीना है
सोच रहे हैं खड़े खड़े
ऐसे जीने से तो जी भर गया
इन लोगों का तो ज़मीर मर गया
चल उठा मशाल, आगे बढ़
इंतजार में है तेरे ” झूंड” बड़े बड़े/
© श्याम खापर्डे
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