श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

 

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं ”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं।  आज प्रस्तुत है उनकी  मानवीय आचरण के एक पहलू पर  जीवन का कटु सत्य दर्शाती लघुकथा  “श्रद्धा । )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं – #32☆

☆ लघुकथा – श्रद्धा☆

“तू कहती थी न कि हमारा हरीश औरत का गुलाम है. वह बड़ा आदमी हो गया. अब हमारी सेवा क्या करेगा. पर तू देख. वह मेरे हार्टअटेक की खबर सुनते ही शीघ्र चला आया. उस ने मुझे अस्पताल में भरती कराया और यह मोबाइल दे दिया.” हरीश के बापू अपने बड़े बेटे की अपनत्व से अभिभूत थे.

मगर दूसरे ही क्षण उन का यह दिव्यस्वप्न मोबाइल पर आए दोस्त के फोन को सुन कर टूट गया, “अरे भाई हरीश ! अब तो सब बंटवारा हो गया होगा. जल्दी से यहाँ चले आओ. क्या बूढ़े को जिंदगी भर रोने का इरादा है. ”

पिता के हाथ से मोबाइल छूट कर दूर जा गिरा और बेटे के प्रति श्रद्धा की अर्थी उन की अंतिम साँस के साथ निकल गई.

 

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) मप्र

ईमेल  – [email protected]

मोबाइल – 9424079675

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