डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपका भावप्रवण गीत – मैंने सब कुछ मान लिया…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 157 – गीत – मैंने सब कुछ मान लिया…
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जो भी तुमने कहा सुनयने
मैंने सब कुछ मान लिया।
तुमने कहा दूर हट जाओ
खड़ा हुआ मैं हट के
वही कायदे माने मैंने
जो होते पनघट के
तुमने कहा नाम मत पूछो
मुझको नहीं भरोसा,
मैं तो मरा प्यास का मारा
तुमने जीभर कोसा।
बेमन से कोसा था तुमने
मैंने सच को जान लिया
तुमने कहा भूलना होगा
पिछली सारी यादें
इसका मतलब समझा मैंने
सुन लोगी फरियादें ।
मौन स्वयं मुखरित होता है
मैंने मन में ठान लिया।
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© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
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