श्री राकेश कुमार
(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” आज प्रस्तुत है आलेख की शृंखला – “देश -परदेश ” की अगली कड़ी।)
☆ आलेख # 53 ☆ देश-परदेश – बची हुई दवाएं ☆ श्री राकेश कुमार ☆
हम सब अपने आप को स्वास्थ्य रखने के लिए नाना प्रकार की दवाओं का सेवन करते हैं। समय समय पर अस्वस्थ होने पर अंग्रेजी दवाओं का प्रयोग अब दैनिक जीवन का एक भाग हो चुका है। अनेक बार डॉक्टर बदलने या दवा को बदल देने से बहुत सारी दवाइयां शेष रह जाती हैं। प्रायः सभी के घर में बची हुई या शेष रह गई दवाइयों का स्टॉक पड़ा रह जाता है। कुछ समय के अंतराल पर वो निश्चित समयपार हो जाने के कारण अनुपयोगी हो जाती हैं।
इस प्रकार की दवाइयां निज़ी धन की हानि करती है, साथ ही साथ इसको राष्टीय क्षति भी कहा जा सकता है।
एक तरफ आर्थिक रूप से कमज़ोर लोग दवा को खरीदने में असमर्थ होते हुए ना सिर्फ शारीरिक कष्ट उठाते है, वरना अनेक बार जीवन से भी मुक्त हो जाते हैं।
ये कैसी विडंबना है, एक तरफ दवा बेकार हो रही है, दूसरी तरफ बिना दवा की जिंदगी खोई जा रही है। कुछ शहरों में इन बची हुई दवाओं को जरूरतमंद लोगों के उपयोग की व्यवस्था होती हैं, परंतु जानकारी के अभाव में बहुत सारी दवाइयां अनुपयोगी हो जाती हैं। यदि आपके पास किसी भी संस्था के बारे में पुख्ता जानकारी हो तो समूह में सांझा कर देवें, ताकि उसका सदुपयोग हो सकें।
जब परिवार के किसी सदस्य की बीमारी से मृत्यु हो जाती है, उस समय तो बची हुई बहुत सारी दवाएं अनुपयोगी हो जाती हैं।
हम में से अधिकांश साथी सेवानिवृत हैं, कुछ समय इस प्रकार की गतिविधियों को देकर, समाज के आर्थिक रूप से कमज़ोर व्यक्तियों के बेहतर स्वास्थ्य के लिए कर सकते हैं।
आप सभी से आग्रह है, की इस बाबत अपने विचार और सुझाव सांझा करें ताकि उनका प्रभावी उपयोग हो सकें।
© श्री राकेश कुमार
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