(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ” में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है एक कविता – कृष्ण ही ब्रह्म हैं…)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 232 ☆
कविता – कृष्ण ही ब्रह्म हैं…
कृष्ण ही ब्रह्म हैं, कृष्ण ही दिष्यु हैं
कृष्ण ही सत्य हैं, कृष्ण सर्वस्व हैं
हम राहगीर हैं, कृष्ण की राह के
कृष्ण से गीत हैं,कृष्ण से मीत हैं
कृष्ण से प्रीत है, कृष्ण से जीत है
हम राहगीर हैं,कृष्ण की राह के
कृष्ण हैं काफिया,कृष्ण ही हैं रदीफ
कृष्ण से नज्म है, कृष्ण में वज्न है
हम राहगीर हैं, कृष्ण की राह के
कृष्ण हैं शाश्वत, कृष्ण अंतहीन हैं
कृष्ण ही हैं प्रकृति, कृष्ण संसार हैं
हम राहगीर हैं, कृष्ण की राह के
कृष्ण सरोकार हैं, कृष्ण ही प्यार हैं
कृष्ण त्यौहार हैं, कृष्ण व्यवहार हैं
हम राहगीर हैं, कृष्ण की राह के
कृष्ण ही हैं किताब, कृष्ण ही ग्रंथगार
कृष्ण ही हैं नियम, कृष्ण सरकार हैं
हम राहगीर हैं, कृष्ण की राह के
कृष्ण हैं शीर्षक, कृष्ण ही वाक्य हैं
कृष्ण ही भाष्य हैं, कृष्ण अभिसार हैं
हम राहगीर हैं, कृष्ण की राह के
कृष्ण ही मंजिलें, कृष्ण ही मार्ग हैं
हम राहगीर हैं, कृष्ण की राह के
© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023
मोब 7000375798
ईमेल [email protected]
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈