श्रीमती सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है समाज के चिंतनीय विमर्श पर आधारित एक विचारणीय लघुकथा “मोबाइल में रस्म रिवाज”।)
☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 169 ☆
☆ लघुकथा – 📱मोबाइल में रस्म रिवाज 📱 ☆
शकुंतला देवी गांव में तो बस उसका नाम ही बहुत था। सारे गांव के लिए वह देवी के समान थी क्योंकि गांव की बिटिया थी और सभी की सहायता करती थी। जाने अनजाने सब का भला करती थी। बिटिया सयानी हो चली थी। कहने को तो उसकी शादी धूमधाम से रईस खानदान में दूर दराज शहर में एक नामी परिवार में हुआ था। परंतु पति की अय्याशी और गैर जिम्मेदारी के कारण उसका विवाह ज्यादा दिन नहीं चला।
उसे अपना भाग्य समझे या दुर्भाग्य दोनों का एक बेटा था। बेटे को लेकर वह सदा – सदा के लिए फिर से अपने गांव मायके आ गई। अपनी सूझबूझ से गांव की एक पाठशाला से आज वह गवर्नमेंट स्कूल की प्रिंसिपल बन चुकी थी। अपने बच्चे के लालन- पालन में कोई कसर नहीं रखी थी, परंतु कहते हैं कि खून का असर कहीं नहीं जाता है। बेटा भी उसी रंग ढंग का निकला।
वह उसे एक बड़े शहर में हॉस्टल में भर्ती कराकर कि शायद वह सुधर जाएगा, वह आ गई और अकेली समय काट रही थी। साथ में एक आया बाई हमेशा रहती थी।
उम्र का पड़ाव अब ढलान की ओर होने लगा। चिंता की गहरी रेखाएं उसके माँथे को ततेर रही थी। कभी जब बहुत कहने पर वक्त का बहाना बना देने वाला उसका बेटा आज माँ शकुंतला देवी से वीडियो कॉल पर बात कर रहा था….माँ शादी के रीति रिवाज मैं नहीं मानता। परन्तु यह देखो हम दोनों यहां शादी कर रहे हैं। तुम कहती… हो सिंदूर की गरिमा होती है। तो मैं इसके माँग पर सिंदूर भी लगा रहा हूँ। परंतु मुझे आपके रीति रिवाज में कोई दिलचस्पी नहीं है।
हाथ से हेलो करती दूसरी तरफ से कटे बाल वाली लड़की कहने लगी… हमें आशीर्वाद तो दे दो हमारी नई जिंदगी शुरू हो रही है।
शकुंतला देवी के सैकड़ो हजारों अरमान कांच के गिरकर टूटने जैसे एक ही बार में बिखर गए। सपने संजोए वह क्या-क्या सोच रही थी। परंतु बेटे ने तो एक बार में वीडियो कॉल से ही निपटा दिया। आज वह पूरी तरह टूट चुकी थी।
तभी कमरे के दरवाजे से पंडित जी की आवाज आई… बहन जी पिंडदान की पूरी तैयारी हो चुकी है। बस आप कहे तो हम आगे का कार्यक्रम शुरू करें।
शकुंतला देवी ने कहा पंडित जी आज जोड़े से पिंडदान कीजिएगा। मैं अपना स्वयं जीते जी पिंडदान करना चाहती हूँ। कुछ देर बाद वह निर्णय ले अपनी सारी संपत्ति, सामान गाँव के अनाथ बच्चों और बुजुर्गों के लिए रजिस्टर्ड कर अपना पिंडदान कर सारी रस्म – रिवाज पूरी करने लगी।
गांव में हलचल मच गई सभी ने कहा… यह कैसा मोबाइल में रस्म रिवाज चल गया जो आदमी को जीते जी मार रहा है। क्या? मोबाइल से रस्म रिवाज निभाए जाते हैं? शादी विवाह या और कुछ रीति रिवाज निभाए जाते हैं।
गांव में जितने लोग उतनी बातें होने लगी शकुंतला देवी के पास फिर कभी वीडियो कॉल नहीं आया। आज उसके मुखड़े पर चिंता की लकीर नही खुशियों की झलक दिखाई दे रही थी।
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© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈