हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कोहरे के आँचल से # 25 ☆ पतझड़ ☆ सौ. सुजाता काळे
सौ. सुजाता काळे
(सौ. सुजाता काळे जी मराठी एवं हिन्दी की काव्य एवं गद्य विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। वे महाराष्ट्र के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल कोहरे के आँचल – पंचगनी से ताल्लुक रखती हैं। उनके साहित्य में मानवीय संवेदनाओं के साथ प्रकृतिक सौन्दर्य की छवि स्पष्ट दिखाई देती है। आज प्रस्तुत है सौ. सुजाता काळे जी एक भावप्रवण कविता “पतझड़ ”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कोहरे के आँचल से # 25 ☆
☆ पतझड़ ☆
मैंने देखा,
पतझड़ में
झड़ते हैं पत्ते,
और
फल – फूल भी
छोड़ देते हैं साथ।
बचा रहता है
सिर्फ ठूँस
किसलय की
बाट जोहते हुए।
मैंने देखा
उसी ठूँठ पर
एक घोंसला
गौरैया का,
और सुनी
उसके बच्चों की,
चहचहाट साँझ की।
ठूँठ पर भी
बसेरा और,
जीवन बढ़ते
मैंने देखा
पतझड़ में ।
© सुजाता काळे
पंचगनी, महाराष्ट्र, मोब – 9975577684