श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ “जय प्रकाश के नवगीत ” के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “कवि कुछ ऐसा लिख…” ।)
जय प्रकाश के नवगीत # 27 ☆ कवि कुछ ऐसा लिख… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆
कवि कुछ ऐसा लिख
कि जनता जागे
वरना गूँगे रह जायेंगे
गीत अभागे
कौन कहाँ पर
देता है आवाज़ किसी को
बैठे ठाले
कोसा करते नई सदी को
कर ऐसा उद्घोष कि
जड़ता भागे।
प्रत्युत्तर में
नहीं दबे आलोचक दृष्टि
अनहद गूँजे
विप्लव पाले सारी सृष्टि
तोड़ वर्जनाओं को
बढ़ तू आगे।
समय कठिन है
घोर अराजकता है फैली
शब्द निरंतर
भाव नदी की चादर मैली
छोड़ दुखों को बुन ले
सुख के धागे।
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© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)
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