हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विशाखा की नज़र से # 19 – प्रश्न आत्मा का परमात्मा से ☆ श्रीमति विशाखा मुलमुले
श्रीमति विशाखा मुलमुले
(श्रीमती विशाखा मुलमुले जी हिंदी साहित्य की कविता, गीत एवं लघुकथा विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी रचनाएँ कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं/ई-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं. आपकी कविताओं का पंजाबी एवं मराठी में भी अनुवाद हो चुका है। आज प्रस्तुत है जीवन दर्शन पर आधारित एक दार्शनिक / आध्यात्मिक रचना ‘प्रश्न आत्मा का परमात्मा से ‘। आप प्रत्येक रविवार को श्रीमती विशाखा मुलमुले जी की रचनाएँ “साप्ताहिक स्तम्भ – विशाखा की नज़र से” में पढ़ सकेंगे. )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 19 – विशाखा की नज़र से ☆
☆ प्रश्न आत्मा का परमात्मा से ☆
जिस तरह चुनती हूँ मैं
पूजा के फूल अगली सुबह
हे देव ! क्या तुम भी इसी तरह
चुनते हो आत्मा के फूल मुरझाए हुए ?
जिस तरह रखती हूँ मैं
बदले में उसके सुहासित पुष्प
हे देव ! क्या तुम भी इसी तरह
बदलते हो कलेवर को ?
यह छोटी सी क्रिया मेरा पूजन है
कुछ अर्पण है तेरे नाम का
क्या तेरी क्रिया भी पूजन है
और ये मन्त्र है बदलाव का ?
जिस तरह करती हूँ जप
रखती हूं व्रत तेरे नाम का
शेष शय्या पर लेटे हुए
या पुष्प पर बैठे हुए
क्या स्मरण तुझे मेरे नाम का ?
हम इस धरा के सूक्ष्म से थलचर
पृथ्वी के घ्ररूण संग फिरते है हम, हर पल
जन्म – मरण के इस चक्र में
हे देव ! क्या रूप बदल
करते हो भ्रमण हमारे लिए ?
© विशाखा मुलमुले
पुणे, महाराष्ट्र