सुश्री दीपा लाभ 

(सुश्री दीपा लाभ जी, बर्लिन (जर्मनी) में एक स्वतंत्र पत्रकार हैं। हिंदी से खास लगाव है और भारतीय संस्कृति की अध्येता हैं। वे पिछले 14 वर्षों से शैक्षणिक कार्यों से जुड़ी हैं और लेखन में सक्रिय हैं।  आपकी कविताओं की एक श्रृंखला “अब वक़्त  को बदलना होगा” को हम श्रृंखलाबद्ध प्रकाशित करने का प्रयास कर रहे हैं। आज प्रस्तुत है इस श्रृंखला की अगली कड़ी।) 

☆ कविता ☆ अब वक़्त  को बदलना होगा – भाग -2 सुश्री दीपा लाभ  ☆ 

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जो कथा सुन हम बड़े हुए

उसका प्रमाण पीढ़ी माँगे

रावण का छल, अर्जुन का बल

अब असर वो नहीं करती है

सत्य-असत्य के बहस में क्यों

मुद्दे की बात नदारद हो

जीवन का सार सरल तो है

इसमें क्यों कोई संशय हो

असत्य हारता है हर बार

सत्य सदा विजयी होता

कर्म से बड़ा कोई धर्म नहीं

संकल्प से बड़ा कोई प्रण नहीं

इस मर्म को समझना होगा

यह रीत सनातन की ही है

एक अवसर तो देना होगा

अब वक़्त को बदलना होगा

संस्कारों का महाज्ञान

गीता में है, मानस में है

जीवन का उच्च-आदर्श रुप

कर्तव्यनिष्ठ जीने में है

सीखने की कोई उम्र नहीं

मन में जिज्ञासा आने दो

सीखो, समझो, अपनाओ इसे

प्रयास स्वयं करना होगा

अब वक़्त को बदलना होगा

© सुश्री दीपा लाभ 

बर्लिन, जर्मनी 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈
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