श्री सुरेश पटवा
(श्री सुरेश पटवा जी भारतीय स्टेट बैंक से सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों स्त्री-पुरुष “, गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकश।आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण ग़ज़ल “काम आई मिट्टी आख़िर ख़ाक में मिलाने…”।)
ग़ज़ल # 96 – “काम आई मिट्टी आख़िर ख़ाक में मिलाने…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
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तू निकला नहीं जब तलक ख़ुद के अँधेरों से,
क्या भला होगा तेरा सूरज के सवेरों से।
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कोई नहीं फैलाता है फाँसने को रेशमी जाल,
अकसर मकड़ी फँसती ख़ुद के बनाए घेरों से।
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काम आई मिट्टी आख़िर ख़ाक में मिलाने,
ताज़िंदगी रौंदता रहा कुम्हार जिसे पैरों से।
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वह तीर तो चला था हमदम की कमान से,
अब हम क्या शिकायत करें जाकर ग़ैरों से।
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‘आतिश’ कभी तो ख़ुशहाली आएगी देश में,
तुम भी क्या उम्मीद लगाकर बैठे लुटेरों से।
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© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
भोपाल, मध्य प्रदेश
≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈