श्री सुरेश पटवा
(श्री सुरेश पटवा जी भारतीय स्टेट बैंक से सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों स्त्री-पुरुष “, गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकश।आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण ग़ज़ल “ये दिल भी ख़ाली कहाँ रह पाता है…” ।)
ग़ज़ल # 100 – “ये दिल भी ख़ाली कहाँ रह पाता है…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
☆
ज़िंदगी जब तलक आबाद रहती है,
इंसान में एक आरज़ू शादाब रहती है।
☆
ये दिल भी ख़ाली कहाँ रह पाता है,
तू नहीं होता तो तेरी याद रहती है।
☆
कोई किसी दम तन्हा नहीं रह पाता,
मुहब्बत मिलने की फ़रियाद रहती है।
☆
खंडहर में कबूतर फड़फड़ाते हैं बेजा,
कोई आरज़ू दिले बरबाद रहती है।
☆
खूब इकट्ठा कर लिया संगों ख़िस्त,
ज़िंदगी मौत की ज़ायदाद रहती है।
☆
जीते रहोगे इस जहान में तब तक,
जब तलक हसरत आबाद रहती है।
☆
दबी कुचली आह कसमसाती आतिश,
एक तमन्ना-ए-वस्ल नाशाद रहती है।
☆
© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
भोपाल, मध्य प्रदेश
≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈