श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी के साप्ताहिक स्तम्भ “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे…”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।
मनोज साहित्य # 105 – मनोज के दोहे… ☆
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1 चाँद
हाथ थाम कर चल प्रिये, प्रेम भरी सौगात।
चाँद हँसा आकाश में, शरद पूर्णिमा रात।।
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2 चकोर
नयना चंद्र चकोर बन, प्रिय को रहे निहार।
विरहन-सी रातें लगें, प्रतिदिन लगते भार।।
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3 चंद्रिका
शरद रात में चंद्रिका, झिलमिल लगे अनूप।
शृंगारित दुल्हन बनी, धरे मोहनी रूप।।
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4 चंद्रमुखी
देख रही आकाश में, चंद्रमुखी वह चाँद।
स्वप्न सलौने बुन रही, प्रेमिल सी उन्माद।।
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5 पूनम
पूनम का वह चाँद फिर, खिला आज आकाश।
पृथ्वी पर बिखरा रहा, दुधिया नवल प्रकाश।।
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6 शरद
शरद ऋतु ने ठंड की, बिखराई सौगात।
ओढ़ दुशाला काँपते, बूढ़ों की जगरात।।
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© मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
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