आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’
(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि। संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत हैं – एक प्रयोग – सॉनेट – कल (इटैलियन /इंग्लिश शैली) …।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 164 ☆
☆ एक प्रयोग – सॉनेट – कल (इटैलियन /इंग्लिश शैली) … ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆
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☆☆ सॉनेट – कल (इटैलियन शैली) ☆☆
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‘आज’ के दोनों तरफ ‘कल’ है,
कल कभी आता नहीं देखा,
कल कभी करता नहीं लेखा,
‘ले खा’ कभी कहता नहीं कल है।
किलकिल कभी करता नहीं कल है,
कल नहीं खींचे कभी रेखा,
कल कभी देता नहीं धोखा,
कलकल निनादित हो रहा कल है।
कल खिलाता आज को गोदी
आज नभ से ऊगता रवि कल
कल सँजोए आज का सपना।
खेलता कल आज की गोदी
आज नभ में डूबता शशि कल
खिलता कल आज को गोदी।
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☆☆ सॉनेट – कल (इंग्लिश शैली) ☆☆
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‘आज’ के दोनों तरफ ‘कल’ है,
इसलिए क्या हुआ बेकल आज?
विश्व बेबस खो रहा ‘कल’ है,
मनुज पर ‘कल’ कर रहा है राज।
‘अकल’ के बिन रह न सकता आज,
‘शकल’ ही है आज की पहचान,
‘नकल’ कर वानर न पाता ताज,
‘कल’ तभी जब पा सकें सम्मान।
आजकल क्या हो रह मत देख,
खेल कुर्सी का रहे सब खेल,
क्या किया किसने नहीं तू लेख,
बीतती जो मौन रहकर झेल।
‘कल’ सके रख ‘सलिल’ उन्नत भाल।
‘आज’ कर श्रम; स्वप्न तब ही पाल।।
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© आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’
२८.११.२०२३
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