डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपका भावप्रवण गीत –और अब क्या चाहिये…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 165 – गीत – और अब क्या चाहिये…
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मिल गया मोती सरीखा मन
और अब क्या चाहिये।
कुसुम कुसुमित रूप के, रसके
सैकड़ों इस बाग में देखे
सुमन सुरभित कब कहाँ किसने
पलझरों के भाग में लेखे ।
सुमन ने सादर बुलाया है और अब क्या चाहिये।
अनगिनत है लोग जिनके
पास तक कोई भी जाता नहीं
एक टूटे गीत के मानिन्द हैं
कोई भी गाता नहीं।
खुद बाँसुरी आई अधर तक और अब क्या चाहिये।
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© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
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