सुश्री दीपा लाभ
(सुश्री दीपा लाभ जी, बर्लिन (जर्मनी) में एक स्वतंत्र पत्रकार हैं। हिंदी से खास लगाव है और भारतीय संस्कृति की अध्येता हैं। वे पिछले 14 वर्षों से शैक्षणिक कार्यों से जुड़ी हैं और लेखन में सक्रिय हैं। आपकी कविताओं की एक श्रृंखला “अब वक़्त को बदलना होगा” को हम श्रृंखलाबद्ध प्रकाशित करने का प्रयास कर रहे हैं। आज प्रस्तुत है इस श्रृंखला की अगली कड़ी।)
☆ कविता ☆ अब वक़्त को बदलना होगा – भाग – 8 ☆ सुश्री दीपा लाभ ☆
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हम भ्रष्टाचार का रोना रोते हैं
हर महकमे पर तंज कसते हैं
हो अफसर सरकारी बाबू
या हो कोई प्राइवेट क्लर्क
खामियों की गिनती करते हैं
हर रोज़ गालियाँ देते हैं
ये हुआ क्यों, कैसे हुआ
ऐसा विचार कब करते हैं
जड़ में जाना हो इनकी तो
घर से इसकी शुरुआत करो
समस्या कहाँ नहीं है आज
विश्लेषण करो, विचार करो
समस्या गिनाने में कैसी बहादुरी
उन्हें सुलझाने के उपाय करो
कहीं ऊँगली उठाने से पहले
अपनी गिरेबान में झाँको
हर भ्रष्ट आचरण की शुरुआत
अपने घर से तो होती है
गलत-सलत अच्छा या बुरा
सब सामने घटता रहता है
चुप्पी धर कर सहते रहना
क्या इससे मन नहीं बढ़ता है?
लाचारी का रोना बहुत हुआ
जागरूक हो फर्ज़ निभाना होगा
अब वक़्त को बदलना होगा
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© सुश्री दीपा लाभ
बर्लिन, जर्मनी