श्री जय प्रकाश पाण्डेय
(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में सँजो रखा है। आज प्रस्तुत है आपका एक व्यंग्य – “कौन बनेगा मुख्यमंत्री?”)
☆ व्यंग्य – “कौन बनेगा मुख्यमंत्री?” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆
सच में ये मीडिया वाले इतने निष्ठुर हो गए हैं कि आम आदमी की पीड़ा को भूलकर विज्ञापन और अपने फायदे में लगे रहते हैं। सेलेब्रिटी, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री आदि की तरफ देखते रहते हैं। एक चैनल के पत्रकार से कहा कि गंगू के यहां की गाय बियानी है बछड़ा के तीन आंखें हैं तो जाकर फोटो-ओटो, वीडियो-ईडिओ बना लो… लोगों को पता चलेगा तो दान दक्षिणा, चढ़ावा-चढ़ोत्री खूब होगी बेचारे गंगू की गरीबी दूर हो जाएगी। बेरोजगारों को रोजगार मिल जाएगा, नारियल अगरबत्ती, चिरौंजीदाना, प्रसाद, पकोड़ा, चाय-पान की दुकानें लग जाएंगी, श्रद्धालुओं की भीड़ बढ़ेगी… पर वो पत्रकार सुनता ही नहीं, कहता है अभी ‘कौन बनेगा मुख्यमंत्री’ के बहाने टीवी चैनल वालों को ज्यादा कमाई हो रही है।
आजकल हर मंत्री और बड़े नेताओं की बयानबाजी से चैनल और अखबार को बहुत फायदा मिल रहा है भरपूर विज्ञापन के साथ कुछ गोपनीय फायदे भी हो जाते हैं। सब तरफ झूठ और झटके का माहौल है। कुछ साल से झूठ के पांव इतने लम्बे और मजबूत हो गए कि मीडिया के कैमरे झूठ के पांव से दौड़ने लगे हैं। आजकल नेता लोग नशे में कुछ भी बोल देते हैं फिर होश आने पर बयानों में तोड़-फोड़ का आरोप लगाकर गंगा में नहा लेते हैं। अभी सबसे बड़ी बात है, सबसे बड़ा सस्पेंस मुख्यमंत्री कौन होगा है ।
यहां मंच के बीच में एक सजी-धजी कुर्सी रखी है कुर्सी में मुख्यमंत्री लिखा है… सब देख रहे हैं कि सच में ‘मुख्यमंत्री’ लिखा है। भीड़ में कुर्सी की सजावट की चर्चा है। पर्यवेक्षक के आने में थोड़ा देर है, सस्पेंस है, रोमांच है और इसे बढ़ाने में चैनल के चिल्लाने वाले एंकर खासकर महिलाएं खूब मजा ले रहीं हैं। तरह-तरह के तरीकों से झूठ-मूठ का सस्पेंस घुसेड़ने की तरकीबें चल रहीं हैं। गंगू के पेट में भूख कुलबुला रही है, दिमाग में टेंशन है, हाल-बेहाल हैं, पर ऐसे में सस्पेंस और रोमांचक क्षणों का स्वाद लेना ही पड़ेगा, बीच में भाग नहीं सकते।
भीड़ से आवाज आयी – जिन्हें मुख्यमंत्री बनना है वे सब आने में देर क्यों कर रहे हैं ?
पीछे से किसी ने कहा – दिल्ली गए थे डांट पड़ी है मन उदास है…
हलचल मची, वे सब आ गये शायद… सच में आ गए पर वे मुख्यमंत्री की कुर्सी तरफ नहीं गए सामने तरफ की पब्लिक वाली कुर्सी में धंस गए…। पूरे हाल में सन्नाटा छा गया, प्रश्न उछल – कूद करने लगे… सब परेशान। अपने तरफ से सब अंदाज लगाने लगे अचानक ये पुराने मुख्यमंत्री को क्या हो गया? अभी तक तो कुर्सी देख कर दौड़ लगा देते थे पर आज… कुर्सी से मोह भंग…।
आकाशवाणी हुई – क्या आज मुख्यमंत्री की कुर्सी खाली रहेगी? कुर्सी में कोई नहीं बैठेगा ? क्या आनंद की अनुभूति उदासी के साथ होगी?…
टी आर पी के चक्कर में मीडिया हैरान-परेशान दिखा। उनसे कुर्सी में बैठने का निवेदन हुआ पर वे टस से मस नहीं हुए। खड़े होकर उदास स्वर में बोले – “मैं तो जा रहा हूँ मेरी कुर्सी पर कोई भी बैठ सकता है…”
मुख्यमंत्री का ये बयान ‘धजी का सांप’ बन के फन काड़ के खड़ा हो गया। खबरिया चैनलों ने इसे गंभीर संकेत समझ लिया। बवडंर उठा और तूफान बनकर चैनलों में बहस में तब्दील हो गया। दिन भर सोशल मीडिया में अफवाहों का दौर चला। लोगों ने भावी मुख्यमंत्री के नामों का अंदाजा भी लगाना शुरू कर दिया।
एक पर्यवेक्षक ने अध्यक्ष और मुख्यमंत्री पर कमाल की बयानबाजी कर दी, पद के दावेदारों के मन ही मन में लड्डू फूटने लगे। अध्यक्ष की कुर्सी मिलते ही बड़ी भारी कुर्सी हिल गई। अध्यक्ष गोटी फिट करने में तेज हैं और लगा कि लक जो है तो लकलका रहा है…
मीडिया उतावलेपन और एक दूसरे को पीछे छोड़ने के फेर में पगला गया। राजनैतिक सरगर्मियां बढ़ गईं, बयानबाजी का बाजार लग गया। विपक्षी नेताओं के ट्वीट आने लगे। अफवाहों ने अचानक एक दावेदार को मुख्यमंत्री बनाकर परोस दिया। विपक्ष ने कहा कि पुराने वाले अब हताश होकर निराश हो गये हैं तभी तो सजी-सजी सजाई कुर्सी में नहीं बैठे। मीडिया जो भी खबरें दे रहे थे कन्फ्यूजन से भरी। आंखों में इमेज झोंक कर सच-झूठ एक साथ बोल रहे थे, कुर्सी का मोह बड़ा खराब होता है। ज्यादा हो-हल्ला मचता देख पुराने मुख्यमंत्री ने ट्विटर पर ट्वीट कर दिया कि हम ‘मिशन 29’ में बिजी हैं हमें मुख्यमंत्री की कुर्सी अभी सपने में दिख रही है, और मन में लड्डू फूट रहे हैं, तो हम क्या करें…
© जय प्रकाश पाण्डेय
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