श्री राकेश कुमार
(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” आज प्रस्तुत है आलेख की शृंखला – “देश -परदेश ” की अगली कड़ी।)
☆ आलेख # 62 ☆ देश-परदेश – हवाई हवा ☆ श्री राकेश कुमार ☆
इन दिनों सब तरफ हवाई हवा छाई हुई हैं। हमारे देश में फुसतियों की आबादी दिन दोगुनी और रात चौगानी बढ़ रही हैं।
विगत दिन हवाई यात्रा के समय बहुत दुखद हुआ। पूरा देश सोशल मीडिया पर आकर नाना प्रकार के msg का आदान प्रदान करने लगे। नव वर्ष/ दिवाली पर जितने बधाई संदेश कॉपी/ पेस्ट होते है, इस घटना को लेकर तो उससे कहीं अधिक msg व्हाट्स ऐप पर हम सबने पढ़े/ देखे।
एयर इंडिया के भी पुराने गड़े हुए विज्ञापन भी जनता ने खोद खोद कर ढूंढ निकाले। पुरानी बात हो, पुराने msg या पुरानी मदिरा हम लोग बहुत पसंद करते हैं।
विषय ये है कि मदिरा भेद भाव नहीं करती। गरीब, अनपढ़, अमीर, बुद्धिजीवी कोई भी उसकी शरण में जाता है, तो वो सबका होश छीन ही लेती हैं। चर्चा ये भी हुई इतना पढ़ा लिखा, विश्व के सबसे अच्छी संस्थानों में से एक में कार्यरत व्यक्ति इतनी गिरी हुई हरकत कैसे कर सकता हैं। दोष उसकी पढ़ाई और परवरिश को देना तो बेमानी होगा।
दोषी तो वो मदिरा है, उसकी बुराई सामाजिक मंचों पर नहीं के बराबर हुई। किसी मंच से ये आवाज नहीं उठी कि हवाई यात्रा में मदिरा पान प्रतिबंधित हो जाना चाहिए। इसके व्यय की राशि से यात्रा किराए में कमी भी हो सकती हैं।
मदिरा पान को अंतरराष्ट्रीय आवश्यकता का पैमाना बनाकर उसकी आड़ में हम में से बहुत सारे इसके सेवन के आदी हो चुके हैं।
अब आप कहेंगें हजारों वर्षों से हमारे समाज में मदिरा सेवन का जिक्र होता रहा हैं। सुर/असुर, राजा रजवाड़े, पूंजीवाद/ समाजवाद कोई भी काल रहा हो, मदिरा सेवन चलता रहा है, और चलता रहेगा।
© श्री राकेश कुमार
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