श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी के साप्ताहिक स्तम्भ “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे…”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।
मनोज साहित्य # 108 – मनोज के दोहे… ☆
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1 रंगबिरंगी
रंगबिरंगी वादियाँ, हरतीं मन का क्लेश।
गिरि कानन सरिता सुमन, सुगढ़ रहे परिवेश।।
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2 रमणीय
महल दिखा रमणीय जब, मन आनंद विभोर।
घर का ही पर आँगना, लगता है चितचोर।।
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3 व्यंजना
काव्य व्यंजना रस पगी, चखें सभी सुस्वाद।
बरसाएँ स्वागत सुमन, मिले दिलों से दाद।।
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4 प्रस्ताव
प्रेम भरा प्रस्ताव पा, खुशियाँ मिलीं अपार।
धरा उतरते ही लगा, उनको जीवन भार।।
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5 संकेत
समझ गया संकेत से, प्रियतम के उर भाव।
आलिंगन में कस लिया, सूखे दिल के घाव ।।
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© मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
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