आचार्य भगवत दुबे
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – प्यासी जर्जर दुखी नदी है…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 31 – प्यासी जर्जर दुखी नदी है… ☆ आचार्य भगवत दुबे
कोई दानी प्यास बुझा दे
प्यासी जर्जर दुखी नदी है
दरक रहे हैं अंग
भसकने लगे
सभी तटरक्षक टीले
अंग-भंग कर रहे माफिया
छीनें रजत वस्त्र रेतीले
बहकर आता कीच, मूत्र, मल
वही गंदगी इसे बदी है
टूट न जाएँ इनकी साँसें
हैं बीमार सहायक सखियाँ
नभ पर घटा तलाश रही हैं
व्याकुल इन नदियों की अँखियाँ
पुनः भगीरथ देने में
अब सक्षम दिखती नहीं सदी है
रहा अंधविश्वास
नदी की हमने नजर उतारी
किन्तु कीच, मल-मूत्र मिलाना
अब तक उसमें जारी
साक्षरता यूँ बढ़ी
रूढ़ियाँ मन पर रहीं लदी
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© आचार्य भगवत दुबे
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