आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’
(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि। संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है – सॉनेट – अनुशासन।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 167 ☆
☆ सॉनेट – अनुशासन ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆
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बैर न ठानो अनुशासन से,
भीड़ समस्या पैदा करती,
नहीं नियम सिर-माथे धरती,
जो जी चाहे करती मन से।
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माने नियम हमेशा सेना,
अनुशासित रह जीते हर रण,
नियम न तोड़े कर हितकर प्रण,
रहे उच्च सिर ऊँचा सीना।
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वृत्ति सुशीला नियम न तोड़े,
जोश होश में रखे संतुलन,
जोशीलापन वहीं उचित है।
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कठिन गणित विद्यार्थी छोड़े,
जो न करे हल अपना नियमन,
मिला वही उत्तीर्ण मुदित है।
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© आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’
२३.१२.२०२३
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