हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं – #5 ☆ जनरेशन गेप ☆ – श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। श्री ओमप्रकाश  जी  के साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं ”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं।  आज प्रस्तुत है उनकी  शिक्षाप्रद लघुकथा “जनरेशन गेप ”। )

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं – #5 ☆

 

☆ जनरेशन गेप  ☆

 

पापाजी  उसे समझा रहे थे ,” सीमा बेटी ! अब तुम्हारी सगाई हो गई है . अब इस तरह यार दोस्तों के साथ घूमने जाना, सिनेमा देखना, शापिंग करना ठीक नहीं है ?….” पापाजी उसे आगे कुछ समझते कि सीमा ने उन्हें बीच में रोकते हुए कहा , ” पापाजी ! आप भी ना , १७ वी सदी की बातें कर रहे है.  हम नई पीढ़ी के लोग हैं. ऐसी पुरानी बातों में विश्वास नहीं करते हैं .”

अभी सीमा अपने पिताजी को जनरेशन गेप पर कुछ और लेक्चर सुनाती कि उस के मोबाइल के वाट्सएप्प पर एक सन्देश आ गया. जिसे पढ़- देख कर सीमा ‘धम्म’ से जमीन पर बैठ गई .

“क्या हुआ ?” सीमा के चेहर पर उड़ती हवाईया देख कर पापाजी ने पूछा तो सीमा ने अपना मोबाइल आगे कर दिया. जिस में एक फोटो डला हुआ था और  नीचे लिखा था , ” सीमा ! मैं इतना भी आधुनिक नहीं हुआ हूँ कि अपनी होने वाली बीवी को किसी और के साथ सिनेमा देखते हुए बर्दाश्त कर जाऊ. इसलिए मैं तुम्हारे साथ मेरी सगाई तोड़ रह हूँ.”

यह पढ़- देख कर पापाजी के मुंह से निकल गया , “बेटी ! यह कौन सा जनरेशन गेप है ? मैं समझ नहीं पाया ?”

शायद  सीमा भी इसे समझ नहीं पाई थी.  इसलिए चुपचाप रोने लगी .

 

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

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